राते

मोहब्बत  में नहीं होती हमेशा एक सी राते
कभी बहार है बरसाते, कभी अंदर है बरसाते
तेरे आगोश में गुजारी न जाने कितनी ही रातें
अब तेरे ही ख्वाब पे हॅसते, है तेरे ख्वाब पे रोते

Comments

Popular posts from this blog

Kavita- मैं राम लिखूंगी

चाय

मन मेरा बेचैन है