चांदनी
चांदनी तारो की चूनर ले
बादलों की डोली में
हवाओ के रस्ते
खिड़की से
मेरे कमरे में उतर आयी
मेरे बिस्तर की सलवटों पे
थिरक रही थी, मचल रही थी
उसकी शीतलता मेरी उंगलिया छुकर
मेरी सांसों की डोर से
मन में उतर आयी
ये जो कुछ सरसरी सी हुई है
इसके छूते ही तन में
एक पुराना एहसास ले आयी
तेरे साथ गुजारी उस रात की
महकी सी एक याद ले आयी
याद तेरी आते ही
जाने क्यों हँसी सी है आयी
होंठ मुस्कुराएं मेरे
पर आँख नम सी हो आयी
ये जो चांदनी है ना
लगता है ये भी संग मुस्काई
इन कीमती पलों में शायद
मेरा साथ देने चली आयी
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