क्यों चला गया


पंछी आये, बैठे, चहके और उड़ गए 

वो शज़र था, जो बाहें फैलाये खड़ा रहा 


मुसाफिर थके, ठहरे और फिर गुजर गए 

ये मंज़िलों का रास्ता था, जो जमी पे पड़ा रहा 


लहरे आयी, खेली और छू कर पलट गयी 

प्यासा रेतीला साहिल, नम हो कर भी बिछा रहा 


वो पले, बढ़े, जिए और फिर चले गए 

बूढा घर राह तकता, झुका झुका सा टिका रहा 


कितने बने, कितने बिगड़े और कितने खो गए 

ये दुनिया का मेला बा-दस्तूर लगा रहा 


जाना प्रकृति है, नियति हैं, फिर सवाल क्यों, 

सवाल ये पूछो, कि जो रुका वो क्यों रुका रहा 




मत पूछ वो आखिर क्यों चला गया ,तय था, 

सवाल ये करो की जो रुका वो क्यों रुका रहा


Sawal ye hai ki jobrooka BI kyo roka raha 

चला गया, पर जो रुका, क्यों रुका रहा 


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