कैसे लिखता तेरी चिठ्ठी का जवाब मैं



लिखता भी कैसे तेरी चिठ्ठी का जवाब मैं 
अपनी चिठ्ठी में तूने अपना पता लिखा ही नहीं था

दे देता मैं तेरे हर एक सवाल का जवाब 
पर तेरी चिठ्ठी में तेरा पता ही नहीं था 

मैं तो कर देता तुझे  'हाँ' कब का सनम 
मुस्कुरा के कभी तूने मुझसे ये पूंछा ही नहीं था

तूने छू कर किया पत्थर भी बेशकीमती रतन 
औकात को किसी ने  इतना मेरी आँका ही नहीं था

कोई उम्मीद अब बाकी नहीं संभलने की मेरे 
हालेदिल मेरा कभी इतना किसीने  भाँपा ही नहीं 
किसी ने दिल मेरा कभी इस कदर तोड़ा ही नहीं था

तू गया तो जाना दर्द अपनों की जुदाई का
क्या करूँ कभी किसी बे मुझे यूँ अपना माना ही नहीं 
क्या करु किसी अपने ने मुझे कभी छोड़ा ही नहीं था

हाथ खाली है , या लाख की किस्मत मेंरे हिस्से 
आजमाया ही नहीं कभी कोई दांव डाला ही नहीं 
क्या पता,मेरी मुठ्ठी को आज तक मैंने खोला ही नहीं था 

कैसे पढ़ लेता है तू, मेरे राजे दिल ये बता 
मैंने लब से कभी कोई लफ्ज निकला ही नहीं 
ये तो वो बात है जिसे मैंने कभी बोला ही नहीं था 

कभी देश पे जल उठते थे नौजवानों के जो दिल 
आज देश जल रहा था पैर कही एक शोला भी नहीं था 
आज जलते देश के दिल में एक शोला भी नहीं था 

बस सुना दिया था फैसला उन्होंने अपना 
मेरे मन को एक बार क्यों करके टटोला भी नहीं था 









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