कामकाजी माँ और उसके हिस्से का रविवार


ज़िन्दगी से लड़ कर जब जीत के 

थकी हुई शाम को घर आती है 

इंतज़ार में बैठे बच्चे का मायूस 

चेहरा देख कर फिर हार जाती है 


एक कामकाजी माँ हर शाम यूँ ही घर आती है 


थकान कुछ और बढ़ जाती है 

फिर भी हिम्मत थोड़ी जुटती है 

बदन दर्द हो तो भी कमर कस 

फिर से काम  में जुट जाती हैं 


एक कामकाजी माँ शाम घर में यूँ ही बिताती है 


नहीं भूलती बच्चो की सारी फरमाइशें 

थकी है वो ये कहाँ किसी से कह पाती है 

पिछली रात उससे किये सारे वादे 

याद रखती है, बड़े जतन से निभाती  हैं


एक कामकाजी माँ  थक के भी यूँ मुस्कुराती है 


वो हर दिन सुबह सवेरे काम पे जाती है 

और हर शाम काम पे ही घर आती है 

बखूबी मैनेज करती है ऑफिस घर और परिवार 

पर कभी मिलता है उसे उसके हिस्से का रविवार?


एक कामकाजी माँ काम में ही अपना रविवार बिताती  है 




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