पूरक

मैं दिखती हूँ नाजुक कमजोर मैं हूँ 
 है बस प्यार तुमसे ,  मजबूर मैं हूँ 
तू ये  समझना किया मुझको हासिल 
मैं खुद ही समर्पितबनी धूल मैं हूँ 

न तुम देवता हो भगवान् तुम हो
हुई मैं जो मीरातभी कृष्ण तुम हो
चुना मैंने खुद हीये वनवास तुम संग 
सुनो बिन सिया केकहाँ राम तुम हो 

ये किस बात का दम्भकैसा अहम् है 
ये कैसी है भ्रान्ति , ये कैसा भरम हैं 
तराजू के पलड़े दोजैसे हैं हम तुम 
अगर तुमसे मैं हूँ तो मुझसे ही हो तुम 

जो सागर सी तेरी ये बाहें खुलेंगी 
मैं नदिया की धरा सी बहती रहूंगी 
तेरा मेरा संगम ही तो है ये जीवन 
तू खो जाना मुझमे मैं तुझमे मिलूंगी 

कमी में जो मेरी तू अवलंब बनेगा 
सम्भालूंगी मैं तुझको जब तू थकेगा 
 सम्पूर्ण तू है और  सम्पूर्ण मैं हूँ 
तू है मेरा पूरकतेरी पूर्ण मैं हूँ 

मैं दिखती हूँ नाजुक कमजोर मैं हूँ 
है बस प्यार तुमसे ,  मजबूर मैं हूँ.......

Comments

Popular posts from this blog

Kavita- मैं राम लिखूंगी

चाय

मन मेरा बेचैन है