मिट्टी और कुम्हार



मैं पिंघली सी गीली मिट्टी, मुझे आकर तराश दे
अपनी आँखों से मुझे देख, मेरी सूरत सवाँर दे
मुझे सांचे में अपने गढ़,मेरे तू नक्श उभार दे
अपने हाथो से मुझे छू, मेरी ये रूह निखार दे

तेरे छू  लेने भर से देख,मैं बनती बिगड़ती हूँ
तेरी चाहत की इसी आगमें जलके निकलती हूँ
मैं वो बन जाऊंगी, तू जैसा भी सोच  ले मुझे
तेरी ही कल्पना हूँ मैं,तेरा ही तो सर्जन हूँ मैं

अपने इस इश्क़ का ये चाक जरा ऐसे तो घुमा
अपने जादू भरे हाथों से, तू कुछ यूँ मुझे बना
मैं तेरे प्यार की सुराही, मुझे तू होठो से लगा
मैं तेरी सोच की परछाई, है तू ही मेरा खुदा


प्याला अमृत का कह मुझे, तू चाहे जाम नाम दे
तू अपनी प्यास बुझा ले, मेरे दिल को करार दे
मेरा हो मोल कुछ, तू सुन मुझे, ऐसा आकार दे
पिंघली मैं गीली मिट्टि,  मुझे आ कर तराश दे





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