आज भी खड़ी हूँ
Jo Ho gayi main teri khud ko main kho chuki hoon
Sab kuch bhula ke tujhse mai is kadar judi hoon
जो हो गयी मैं तेरी, खुद को मैं खो चुकी हूँ
सब कुछ भुला के तुझसे, मैं इस तरह जुडी हूँ
तेरे शहर की मिटटी, मुझसे ये कह रही है
इस नगर ये कूचे अब रहता नहीं है तू
आएगा लौट के तू, मुझसे कभी तो मिलने
मैं इंतज़ार करती, इस उम्मीद में रुकी हूँ
तेरी गली से होके, जो मोड़ जा रहा है
उस मोड़ के किनारे मैं आज भी खड़ी हूँ
यूँ तो सुनी थी मैंने सौ प्यार की कहानी
जो होगयी दीवानी,किस्सा मैं खुद बनी हूँ
और, न रह गयी अधूरी, न हो सकी मैं पूरी
बस तेरी कहानी की मैं, इक टूटी हुई कड़ी हूँ
उस मोड़ के किनारे मैं आज भी खड़ी हूँ..
~kavitaNidhi
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