गुजर तो अब भी जायेगा

गुजर तो अब भी जायेगा,
सफर ये ज़िन्दगी का यूँ
जो  होते साथ तुम मेरे,
क्या कुछ मंज़िल अलग होती

तने से टूट के गिरती
कली भी सोचती है ये
हवाएं संग जो होती
तो क्या ये भी पतंग होती

ये बनके  अब्र है भटकी
ये बूंदे बन के भी बरसी
जो रहती ये समुन्दर में
तो क्या ये भी तरंग  होती

जो  मंझधारो में है कश्ती
जो  तूफानो  में हैं अटकी
क्या होता ye यही सोचे
वो साहिल पर अगर रहती

तके चंदा, चकोरा है
ये क्या गम है बिछोरा है
जो चंदा पे जनम लेता
तो क्या दूरी ये कम होती

ये बारिश गिर गयी है जो
रुके दरियन में ये सोचे
अगर नदियां में गिरती तो
तो क्या सागर से मिल जाती

ये राहें कुछ अलग होती
ये शायद कुछ कठिन होती
तेरा ये साथ पाने की
तसल्ली तो मगर होती

गुजर तो अब भी जायेगा,
सफर ये ज़िन्दगी का यूँ
जो  होते साथ तुम मेरे,
क्या कुछ मंज़िल अलग होती





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