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Showing posts from February, 2020

धरती की व्यथा

आज मानव कोरोना जैसी वैश्विक महामरी से त्रस्त है।  ये बीमारियां, प्रदुषण  और बहुत सी ऐसी ही परेशानियों का आज हमे सामना करना पद रहा है।  और ये मानव जाती की वर्षो से चली आ रही शोषण की नीति का परिणाम है।  मानव ने जिस तरह धरती को प्रदूषित किया है हुमाज उसी के परिणाम भोग रहें हैं।     अक्सर सोचती हूँ अगर आसमान नीचे उतर आये तो हम क्या उसे भी इसी तरह शोषित करेेंगे। ये कविता इसी पर आधारित है।   एक बार आसमान ने धरती से नीचे आने की इच्छा प्रकट की, तब धरती ने आसमान से अपनी पीड़ा इन शब्दों में बयां की - आसमान ने धरती को इच्छा अपनी बतलायी हैं  एक बार तुझ संग धरती  में नीचे रहने को आऊँगा  आँखों में आंसू थे उसके, ऐसे  तड़प उठी थी धरती  पीड़ा से करहा कर  बोली, तू  कैसे यहाँ रह पायेगा  गर तू नीचे आएगा, तू टुकड़ो में बट जायेगा कोई अमेरिका, कोई रूस और कोई चीन कहलायेगा खींची पड़ी इन सरहद में, तू सांस नही ले पायेगा और भड़कती नफ़रत से फिर दम तेरा घुट जायेगा रौशनी तेरी, छोटे छोटे टुकड़ो में बाँटी जाएगी और कीमत उसकी ...

प्यारी सी नाती

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आज मेरे होठो पे फिर से,एक पुरानी धुन आयी है नैनो में जो चेहरा है ये, लगता तेरी परछाई है यादें फिर से ताज़ा हो गयी, जिन पे धुल ये घिर आयी है आज मेरी बेटी के घर में, नन्ही सी बेटी आयी है पच्चीस बरस गयी है पीछे, उम्र  वो पल यूँ जी आयी है जिस पल ये प्यारी सी नाती, गोद में आके मुस्काई है वही अदा है वही हंसी है, वही आँख में सच्चाई है जैसी तुम प्यारी थी बिटिया, बिटिया तुमने भी पायी है ऐसी ही किलकारी होगी, खिल खिल कर वो हंसा करेगी छोटे छोटे हाथ बढ़ा कर, पापा पापा कहा करेगी और जरा फिर बड़ी हुई तो ठुमक ठुमक कर चला करेगी पेरो में प्यार ये बंधे छम छम छम छम किया करेगी कुछ बुद्धू सी कुछ समझी सी, कितनी बाटे किया करेगी फिर वो अपने पापा के संग, कुछ नखरे भी किया करेगी मम्मी की आवाज़ को सुन के,  परदों  में ये छुपा करेगी और अचानक आगे आकर, फिर गोदी में चढ़ा करेगी आज वही आँखों के आगे घड़ियाँ फिर से जी आयीं है जिस पल मैंने देखा था की गुड़िया मेरी शर्मायी है सखियों संग थी बातें हर पल, मासूम सी अंगड़ाई है कलियों सी जो...

Depression

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Dark in the night Having some horrifying sight Crying slowly in fright  Nothing seems to be right  Don’t wanna see light It hurts, it’s too bright No one does understand  They just say, it will be alright Mornings don’t look great It makes me agitate  I don’t love anything Infact to myself, I do hate  I just drag the day Waiting for another night  No one does understand  They just say, it will be all right  For no reason I just cry  I don’t feel happy at all No matter how much I try My body feels burdened My soul is ready to fly Just like a big dragon kite But No one does understand  They just say, it will be all right  Some time it feels so hard To live, It’s better to end my life Screening, beating, I just go mad Searching around a knife Afraid next moment, to me I am giving a tight fig...

ताजमहल-Poem on domestic violence

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चीखती, करहाती, बिलखती एक आवाज़  दफ़न हो गयी ताजमहल में मुमताज़  उसके सपनो का वो ताज महल  जो बनवाया था उसके शहजहां ने  जो सपना उसने देखा था बरसो  और सजाया था जिसे बड़े प्यार से  फूली न समाती थी वो  जब आकार ले रहा था ये सपना  पति, पति का घर और घरवाले  लगता था सब आपना  फिर समझी काफूरी दिखती  इसकी दीवारे और छत संगेमरमर के थे  और इस इमारत में इज़्ज़त नाम के  नाजुक पर बेहद मजबूत दरवाजे लगे थे  वो दरवाजे तोड़ निकल जाना चाहती  पर रिश्तो की बेड़िया उसे  रोक लेती  और वो सर पीट कर इन हसीं दीवारों से  सुबकती हुई ही रह जाती  लोग आते उसके प्यार का ताजमहल देखते  और हँसते मुस्कुराते तारीफ करते  और उसका दिल दर्द से तड़प उठता  और जिस्म के ज़ख्म करहा उठते  बो किसी तरहा अपने आंसू रोकती  फिर खुद को इस बेहद ख़ूबसूरत  ताजमहल रुपी रिश्ते में ...

चांदनी

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चांदनी तारो की चूनर ले बादलों की डोली में हवाओ के रस्ते खिड़की से मेरे कमरे में उतर आयी मेरे बिस्तर की सलवटों पे थिरक रही थी, मचल रही थी उसकी शीतलता मेरी उंगलिया छुकर मेरी सांसों की डोर से मन में उतर आयी ये जो कुछ सरसरी सी हुई है इसके छूते ही तन में एक पुराना एहसास ले आयी तेरे साथ गुजारी उस रात की महकी सी एक याद ले आयी याद तेरी आते ही जाने क्यों हँसी सी है आयी होंठ मुस्कुराएं मेरे पर आँख नम सी हो आयी ये जो चांदनी है ना लगता है ये भी संग मुस्काई इन कीमती पलों में शायद मेरा साथ देने चली आयी

इंतजार

इंतजार का मज़ा तो तब हुआ करता था जब जमाना चिठ्ठियों का हुआ करता था एक ही चिठ्ठी कई कई बार पढ़ा करतें थे अलफ़ाज़ वही हर बार, एहसास नए लगते थे 

राते

मोहब्बत  में नहीं होती हमेशा एक सी राते कभी बहार है बरसाते, कभी अंदर है बरसाते तेरे आगोश में गुजारी न जाने कितनी ही रातें अब तेरे ही ख्वाब पे हॅसते, है तेरे ख्वाब पे रोते

बात हमारी बन जाएगी

माना तुझको है प्यार नहीं लगता हूँ अच्छा, इंकार नहीं पर मेरे प्यार की बातों से ही बात हमारी बन जाएगी इन सर्दी की रातों में जब ठंडी तुझको तड़पायेगी मेरे प्यार की चादर लम्बी तेरी मेरी कट जाएगी माना नहीं  है सपने मेरे फिर भी इस आगोश में मेरे रातों में तू उठ कर रोए ऐसी रात नहीं आएगी मेरे प्यार को न चाह कर फिर कितने दिन तू रह पाएंगी एक ना एक दिन तेरी आँखे प्यार है मुझको कह जाएँगी 
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अरे जनाब।।।हम उनके प्यार पे नहीं एतबार पे मरते हैं धड़कने रुक जाती हैं जब वो तस्सली से मेरे कंधे पे सर रखते हैं 

चुस्कियां कुछ भरते हैं

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कडक़ती सी दुनिया है, सर्द पड़ी ज़िन्दगी आओ संग चाय की, चुस्कियां कुछ भरते हैं एक सिलाई तुम बनो, दूसरी मैं बन जाऊं चलो ऊनी से ख्वाबों के, स्वेटर हम बुनते हैं कभी तुम मुझको सुलझाओ, कभी मैं तुमको उलझाऊँ चलो रंगीन गाँठो के रिश्तें में बँधते हैं धागों को दिल के, उँगलियों से छूकर नर्म शालो में, गर्म से ज़ज़बात बुनते हैं मीठे एहसासो को, शक्कर सा घोल कर आओ संग चाय की, चुस्कियां कुछ भरते हैं

उसी झील पे

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आज गयी थी उसी झील पे , हम  तुम पहली बार मिले थे तेरे प्रथम प्रणय निवेदन से , सपनो के संसार सजे थे आसमान खुशियों से रोया, और ज़मीं कुछ पिंघळी सी थी लहरों सी उठती गिरती वो एक घटा कुछ उमड़ीं सी थी और कनेरी घूप बिछि थी सेज हमारी बनने को चिड़ियों की बोली लगती थी शहनाई सी बजने को आज वहां पर वीरानी थी तन्हाई सी छायी थी बरखा जैसे चली गयी थी ऋतू पतझड़ की आयीं थी गिरते थे मुरझा मुरझा कर  अपनी उन यादो  के पत्ते कैसे उड़ने देती उनको प्यार भरे वो खत तेरे थे सूखे थे बिलकुल अंदर तक आग पकड़ली जल्दी से जल के अब बुझ ही जायेंगे टुकड़े ये मेरे दिल के राख बनीं उन यादों को भी हवा ले गयी संग अपने और बचे अवशेष भी अब तो मिल जायेंगे  मिट्टी में आओगे जब भी तुम ऐसे इस झील के कोने पे मुठ्ठी में लेना तुम मिट्टी और गिरना पानी में सपने मेरे दिख जायेंगे तुम्हे झील आईने में और दफ़न हो जायेंगे वो इसी झील के पानी में

अनकही बातें

वो अनकही बातें, अनकही ही रहें तो बेहतर  वो शब्द जो निकलें और शून्य में खो जाएँ  किसी के दिलोँ दिमाग़ में आश्रय ना पाएं  उनका आशियाँ मेरा दिल ही रहे तो बेहतर  वो अनकही बाते, अनकही ही रहें तो बेहतर  वो बहस  जिसका कभी अंत न हो  अंत ही भी तो परस्पर सहमति न हो  उसपर तर्क रखने से तो चुप रहना बेहतर  वो अनकही बाते, अनकही ही रहें तो बेहतर   वो जो हो कर भी यहाँ  कुछ न बदले  वो जिसका जाना भी यहाँ कुछ न बदले  ऐसे अस्तित्वहीन आकर से तो निराकार बेहतर  वो अनकही बाते, अनकही ही रहें तो बेहतर  वो रिश्ते जो दिल  तोड़ दें और दर्द दें,   धागे मन जोड़ने की जगह बाँध दें   उन धागों का टूट जाना ही बेहतर  वो अनकही बाते, अनकही ही रहें तो बेहतर  मेरी उदास आंखे भी जो तू पढ़ न सके   मुस्कराहट में छिपे मेरे आंसू जो तुझे न दिखे  ऐसे बहते आंसुओं को तो पी जाना बेहतर  वो अनकही बाते, अनकही ही रहें तो बेहतर 
कौन कहता है की जिनके पर नहीं होते उनके आसमानो में कहीं घर नहीं होते उड़ाने परिंदो की नहीं इरादों की मशहूर हुई हैं कैसे उड़ता इंसान हवाओं में गर हौसले इसके बुलंद नहीं होते

बंधन ने घेरा है

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बंधन ने घेरा है ख्वाबो पे पहरा है  घुप से सन्नाटे है  छाया घनेरा हैं   स्याह अँधेरे में  छुपता सवेरा है  घोड़े सी सोचों का ये मन तबेला था  खींचती लगामों से अब क्यों ये ठहरा है आजाद पंछी ये  एकदम अकेला है  बिखरे परो को ले  कोटर में बैठा है  शतरंजी चालों को कैसे ये खेला है आपने ही मोहरों ने रानी को घेरा है  आँखों ने वकृत सा  व्यक्तित्व देखा है  दर्पण में दीखता  क्या मेरा ही चेहरा है ? रेशम के धागों से एक घर बनाया है आपने ही जले ने मकड़ी को घेरा है  बंधन ने घेरा है  ख्वाबो पे पहरा है 

कुछ और ख्वाब सजाते हैं

उन ऊँचे कूचो  में रहने वालो सुनो ये दबी आवाज़ें वक़्त रहते सुनलो इन्हे खोल आपने कानों के दरवाजे जो क्रोध नहीं सुने जाते हैं वो आक्रोश में  बदल जाते हैं रेतीले तूफ़ान वही आते हैं जहाँ पर मैदान रोंदे जातें है जो हवाएं बहने नहीं दी जाती हैं वो ही बवंडर सी उभर आती है देखो ये चिंगारी सुलगने न पाए एक झोके से ये आग में बदलने न पाए  चलो सुनते है हालत उस मछली की जिसके सर तोहमत है तालाब गन्दा करने की क्यों न हम मिलके इसका उपचार करें तोहमत लगाने से नहीं कुछ हासिल इस पर  भी आओ कुछ विचार करें काट कर फेकना इतना भी आसान नहीं जब सड़ने वाला हाथ हो अपना नोच कर फेक दें कुछ फूल ये मुनासिब नहीं  जब हो ये गुलिस्ता अपना उन ऊँचे कूचो में  रहनें वालो चलो कुछ और फूल लगते हैं वो जो मुरझाये से दीखते है हमें उनकी आँखों में कुछ और ख्वाब सजाते हैं कुछ और ख्वाब सजाते हैं.

मैं जो हूँ...

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मैं जो हूँ... मै क्यों  कुछ और बनूँ मैं जो हूँ मैं वही रहूंगी तुमसे बराबरी नहीं चाहिए मैं मेरी मंजिल खुद चुनूंगी मैं जो हूँ मैं वही रहूंगी तुम कौन हो मुझे मेरे ही अधिकार देने वाले  मै अपने अधिकार खुद चुनूँगी  मैं जो हूँ मैं वही रहूंगी  लड़की हो इस वक़्त बहार मत जाओ  लड़की हो ऐसे कपडे मत पहनो  तुम्हारी सोच के दायरे में मै नहीं बंधूंगी  मैं जो हूँ मैं वही रहूंगी  क्यों यहाँ सिर्फ सीता ही साथ निभाती है पत्नी के साथ वनवास जाना क्यों दुनिया राम को नहीं सिखाती है  हर बार अकेले वनवास मैं ही क्यों सहूंगी अपनी पवित्रता हर बार यहाँ  मैं ही  साबित नहीं करूंगी मैं जो हूँ मैं वही रहूंगी हर बार क्यों राधा ही प्रीत निभाती है श्याम कर्त्तव्य के लिए राधा को छोड़ जाएँ या फिर राधा के रहते गोपियों संग रास रचाये दुनिया उन पर  ऊँगली नहीं उठाती है मैं  क्यों न इस बार श्याम बनूं क्यों मैं ही हर बार राधा बनूंगी  मैं जो हूँ मैं वही रहूंगी  घर के बहार तख्ती तेरे नाम की  और मैं घर ल...