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Showing posts from July, 2020

आज भी खड़ी हूँ

Jo Ho gayi main teri khud ko main kho chuki hoon  Sab kuch bhula ke tujhse mai is kadar judi hoon जो हो गयी मैं तेरी, खुद को मैं खो चुकी हूँ  सब कुछ भुला के तुझसे, मैं इस तरह जुडी हूँ  तेरे शहर की मिटटी, मुझसे ये कह रही  है इस नगर ये कूचे अब रहता नहीं है तू आएगा लौट के तू, मुझसे कभी तो मिलने मैं इंतज़ार करती, इस उम्मीद में रुकी  हूँ तेरी गली से होके, जो मोड़ जा रहा है उस मोड़ के किनारे मैं आज भी खड़ी हूँ यूँ तो सुनी थी मैंने सौ प्यार की कहानी जो होगयी दीवानी,किस्सा मैं खुद बनी हूँ  और, न रह गयी अधूरी, न हो  सकी मैं पूरी  बस तेरी कहानी की मैं, इक टूटी हुई कड़ी हूँ उस मोड़ के किनारे मैं आज भी खड़ी हूँ..  ~kavitaNidhi

क्यों चला गया

पंछी आये, बैठे, चहके और उड़ गए  वो शज़र था, जो बाहें फैलाये खड़ा रहा  मुसाफिर थके, ठहरे और फिर गुजर गए  ये मंज़िलों का रास्ता था, जो जमी पे पड़ा रहा  लहरे आयी, खेली और छू कर पलट गयी  प्यासा रेतीला साहिल, नम हो कर भी बिछा रहा  वो पले, बढ़े, जिए और फिर चले गए  बूढा घर राह तकता, झुका झुका सा टिका रहा  कितने बने, कितने बिगड़े और कितने खो गए  ये दुनिया का मेला बा-दस्तूर लगा रहा  जाना प्रकृति है, नियति हैं, फिर सवाल क्यों,  सवाल ये पूछो, कि जो रुका वो क्यों रुका रहा  मत पूछ वो आखिर क्यों चला गया ,तय था,  सवाल ये करो की जो रुका वो क्यों रुका रहा Sawal ye hai ki jobrooka BI kyo roka raha  चला गया, पर जो रुका, क्यों रुका रहा 

कामकाजी माँ और उसके हिस्से का रविवार

ज़िन्दगी से लड़ कर जब जीत के  थकी हुई शाम को घर आती है  इंतज़ार में बैठे बच्चे का मायूस  चेहरा देख कर फिर हार जाती है  एक कामकाजी माँ हर शाम यूँ ही घर आती है  थकान कुछ और बढ़ जाती है  फिर भी हिम्मत थोड़ी जुटती है  बदन दर्द हो तो भी कमर कस  फिर से काम  में जुट जाती हैं  एक कामकाजी माँ शाम घर में यूँ ही बिताती है  नहीं भूलती बच्चो की सारी फरमाइशें  थकी है वो ये कहाँ किसी से कह पाती है  पिछली रात उससे किये सारे वादे  याद रखती है, बड़े जतन से निभाती  हैं एक कामकाजी माँ  थक के भी यूँ मुस्कुराती है  वो हर दिन सुबह सवेरे काम पे जाती है  और हर शाम काम पे ही घर आती है  बखूबी मैनेज करती है ऑफिस घर और परिवार  पर कभी मिलता है उसे उसके हिस्से का रविवार? एक कामकाजी माँ काम में ही अपना रविवार बिताती  है 

पूरक

मैं   दिखती   हूँ   नाजुक ,  न   कमजोर   मैं   हूँ     है   बस   प्यार   तुमसे  ,  न   मजबूर   मैं   हूँ   तू   ये   न   समझना   किया   मुझको   हासिल   मैं   खुद   ही   समर्पित ,  बनी  धूल   मैं   हूँ   न  तुम   देवता   हो ,  न  भगवान्  तुम   हो हुई   मैं   जो   मीरा ,  तभी   कृष्ण   तुम   हो चुना   मैंने   खुद   ही ,  ये   वनवास   तुम   संग   सुनो   बिन   सिया   के ,  कहाँ   राम   तुम   हो   ये   किस   बात   का   दम्भ ,  कैसा   अहम्   है   ये   कैसी   है   भ्रान्ति  ,  ये   कैसा   भरम   हैं   तराजू   के   पलड़े   दो ,  जैसे   हैं   हम ...

कैसे लिखता तेरी चिठ्ठी का जवाब मैं

लिखता भी कैसे तेरी चिठ्ठी का जवाब मैं  अपनी चिठ्ठी में तूने अपना पता लिखा ही नहीं था दे देता मैं तेरे हर एक सवाल का जवाब  पर तेरी चिठ्ठी में तेरा पता ही नहीं था  मैं तो कर देता तुझे  'हाँ' कब का सनम  मुस्कुरा के कभी तूने मुझसे ये पूंछा ही नहीं था तूने छू कर किया पत्थर भी बेशकीमती रतन  औकात को किसी ने  इतना मेरी आँका ही नहीं था कोई उम्मीद अब बाकी नहीं संभलने की मेरे  हालेदिल मेरा कभी इतना किसीने  भाँपा ही नहीं  किसी ने दिल मेरा कभी इस कदर तोड़ा ही नहीं था तू गया तो जाना दर्द अपनों की जुदाई का क्या करूँ कभी किसी बे मुझे यूँ अपना माना ही नहीं  क्या करु किसी अपने ने मुझे कभी छोड़ा ही नहीं था हाथ खाली है , या लाख की किस्मत मेंरे हिस्से  आजमाया ही नहीं कभी कोई दांव डाला ही नहीं  क्या पता,मेरी मुठ्ठी को आज तक मैंने खोला ही नहीं था  कैसे पढ़ लेता है तू, मेरे राजे दिल ये बता  मैंने...

तेरा जवाब आया

जब भी दिल में मेरे तेरा ख्याल आया मेरे चेहरे पे एक सुर्ख रुबाब आया नंगे पाव देहलीज़ तक दौड़ गयी मैं  जब, मेरे नाम तेरा पैगाम आया मैंने भेजे थे जाने कितने खत तुझको बड़ी मुद्दतों के बाद तेरा जवाब आया जो कहा नहीं उसने मुझसे जीते जी  कहा उसने, जब वो मेरी मज़ार आया  सादी साड़ी में दुल्हन सी निखारी मैं मेरे दर पे, जो ले के तू  बारात आया तू एक बार आके घर, मेरा रोशन कर दे मेरा क्या, मैं तो तेरे दर पे कई बार आया

ज़िन्दगी सुलझ गयी

ताउम्र उलझी रही ज़िन्दगी सुलझाने में  जब खुद सुलझी तो ये भी सुलझ गयी  पास रही जब तलक दूरियां दर्मिया रही  जो दूर गयी तो ये दूरिया ही मिट गयी  कहाँ कहाँ खोज़ा तुझे मेरे मालिक खोया जो खुद को खुदा को पा गयी  भटकाती  रही ये मंजिल की आरज़ू  रहा में सफर की खुशिया मिल गयी

बदलने से पहले .....

बहारों का एक खिला सा मौसम था  इस खिजा के आ जाने से पहले  ज़िन्दगी इस तरह खुशनुमा  सी थी  इश्क़ का वो दौर गुजर जाने से पहले  किस तरहा रोका होगा  खुद को उसने दर्द-ए-दिल सुनाने से पहले  दिल खोल रोया होगा वो बादल  मुझे इस तरहा भिगोने से पहले  जख्मी तो रहे होंगे उसके जज़्बात ये नफरत गले लगाने से पहले लथपथ खून में जरूर होंगे वो हाथ मेरी पीठ में खंजर चुभोने से पहले कितना कोमल सा था वो तिनका काटें में बदल जाने से पहले किस कदर धुप में झुलसा होगा मेरे पैरों में चुभ जाने से पहले वो  शक़्स जो आंख में शक लिए चलता है  सौ दफा सोचता है एतबार जताने से पहले सीना उसका भी छलनी तो होगा जरूर मेरे विश्वास को  यूं दफ़नाने से पहले  बेइंतहा  भरोसा है मुझे उसकीवफ़ा पे  आजमाया था मोहोबत करने से पहले  रहा देखी जरूर होगी उसने मेरी मेरी गली के मोड़ से मुड़ जाने से पहले आंखे तो उसकी कई रात रोई होंगी  ...

जाने दे ...

ज़िन्दगी कहाँ मिली है एकसार, जाने दे क्या रखना इन बातो का हिसाब, जाने दे मैं तो क़त्ल हो चुका हूँ तेरी आँखों से सुन अब क्या रखना, ये रुख पे नकाब जाने दे वक़्त अलग था जब, था मुझे तेरा इंतज़ार क्यों करता हैं अब, तू मेरा ख्याल जाने दे जानता है नहीं दे सकती मैं इसका जवाब फिर क्या करना हर बार ये सवाल, जाने दे कुछ जखम कभी नहीं भरते वक़्त के साथ भी  क्यों छु कर करना है उन्हें और हरा, मत छु, जाने दे   हार निश्चित है तेरी इस खेल में फिर क्यों  करती है उम्मीद बाजीगर होने की, जाने दे  कब तलक ये दिल में गुबार रक्खेगी निधि  आँसुओ का ये सैलाब अब निकल जाने दे  --------------------------------------------------  इत्र की शीशी का सरपोश उतर जाने दे कैद खुशबू फ़िज़ा में बिखर जाने दे मत रंग ये उम्र फिर काली  अपनी ये तजुर्बा जरा बालो में सँवर जाने दे  कहाँ ठहरा है बुरा वक़्त कभी कहीं बेसब्र न हो, थम, इसे गुज़र जाने दे  लहरों से हर पल टक्करायी हैं तू   थकी है, रुक, दिशा पलट जाने दे  ख़िज़ा में गर ...

मिट्टी और कुम्हार

मैं पिंघली सी गीली मिट्टी, मुझे आकर तराश दे अपनी आँखों से मुझे देख, मेरी सूरत सवाँर दे मुझे सांचे में अपने गढ़,मेरे तू नक्श उभार दे अपने हाथो से मुझे छू, मेरी ये रूह निखार दे तेरे छू  लेने भर से देख,मैं बनती बिगड़ती हूँ तेरी चाहत की इसी आगमें जलके निकलती हूँ मैं वो बन जाऊंगी, तू जैसा भी सोच  ले मुझे तेरी ही कल्पना हूँ मैं,तेरा ही तो सर्जन हूँ मैं अपने इस इश्क़ का ये चाक जरा ऐसे तो घुमा अपने जादू भरे हाथों से, तू कुछ यूँ मुझे बना मैं तेरे प्यार की सुराही, मुझे तू होठो से लगा मैं तेरी सोच की परछाई, है तू ही मेरा खुदा प्याला अमृत का कह मुझे, तू चाहे जाम नाम दे तू अपनी प्यास बुझा ले, मेरे दिल को करार दे मेरा हो मोल कुछ, तू सुन मुझे, ऐसा आकार दे पिंघली मैं गीली मिट्टि,  मुझे आ कर तराश दे

हार से सीख

                  ————————————————— हमसफ़र  बनके हार, साथ निभाती है रही  मैं सीखती रही ये जो भी सिखाती हैं  रही  टूट के बिखरी तो थी मैं भी,कई बार मगर  मेरी उम्मीद थी जो जोश  बढाती ही रही  चाँद ने लूटी थी जब मेरे सितारों की चमक  आस के जुगनू लिए, रात काटी सुबह तलक  पेँच किस्मत की पतंग ने लड़ायें थे जो जरा  डोर मैं सब्र की हाथो में बस थामे ही रही  तेज तूफानों ने जो वार कई बार किये  टूटी कश्ती में  मैंने हाथ पतवार किये  कभी जो डगमगाए से थे   मेरे पैर जरा  मेरी नज़रे मगर साहिल के उस पार रहीं  जो भी लिखा था मैंने गीले इस साहिल पे  उसे मिटा गयी,सागर की ये पागल लहरें  मैंने सीखा है इनी लहरों से जिद करना मगर  घरोंदे रेंत के थे, ये गिराती, मैं बनाती ही रही  मैं सीखती रही ये जो भी सिखाती हैं  रही......

मैं तेरी हो नहीं सकती

है सागर से बड़ा होना , नदी सा बह नहीं सकती  तेरी खुशियों में ही जीवन लुटाना सह नहीं सकती  मुझे तुम एक हंसीं सा ख्वाब कह के कैद मत करना फकत एक ख्वाब बनके आँख में तेरी रह नहीं सकती हज़ारो ख्वाब मैने भी मेरी आँखों में है पाले मेरे ख्वाबो तो बिन पूरा किये मैं रह नहीं सकती हैं कितनी चाहतें मेरी, बहुत कुछ है मुझे करना मैं तेरा प्यार बनके बस ये जीवन जी नहीं सकती मुझे उड़ना है, छूना है, मेरे आकाश को एक दिन तुम्हारा चाँद बनके इस जमी पे रह नहीं सकती मुझे फूलो सा कहते हो, मगर सुन लो जरा तुम भी मुझे संघर्ष है करना मैं कोमल हो नहीं सकती है मुझसे प्यार तुम को तो चले आओ मेरे संग तुम मुझे हस्ती बनानी है, मैं साया बन नहीं सकती क्यों बाते जान देने की, जो देना है तो जीवन दो ये जीवन है मिला मुश्किल से इसको खो नहीं सकती तेरी ये नींद है काफूर, मुझे पाना है लक्ष्य जो बिन हासिल किये मेरा लक्ष, मैं अब सो नहीं सकती मुझे चाहत बना के  दिल में रख न पाओगे अब तुम मेरी हैं चाहते लाखो, मैं चाहत हो नहीं सकती मेरा ये धेय नहीं है द...

गुजर तो अब भी जायेगा

गुजर तो अब भी जायेगा, सफर ये ज़िन्दगी का यूँ जो  होते साथ तुम मेरे, क्या कुछ मंज़िल अलग होती तने से टूट के गिरती कली भी सोचती है ये हवाएं संग जो होती तो क्या ये भी पतंग होती ये बनके  अब्र है भटकी ये बूंदे बन के भी बरसी जो रहती ये समुन्दर में तो क्या ये भी तरंग  होती जो  मंझधारो में है कश्ती जो  तूफानो  में हैं अटकी क्या होता ye यही सोचे वो साहिल पर अगर रहती तके चंदा, चकोरा है ये क्या गम है बिछोरा है जो चंदा पे जनम लेता तो क्या दूरी ये कम होती ये बारिश गिर गयी है जो रुके दरियन में ये सोचे अगर नदियां में गिरती तो तो क्या सागर से मिल जाती ये राहें कुछ अलग होती ये शायद कुछ कठिन होती तेरा ये साथ पाने की तसल्ली तो मगर होती गुजर तो अब भी जायेगा, सफर ये ज़िन्दगी का यूँ जो  होते साथ तुम मेरे, क्या कुछ मंज़िल अलग होती