ग़ज़ल की पंक्ति हूँ
ग़ज़ल की पंक्ति हूँ दर्द में लिपटी हूँ
बिखरी बिखरी सी हूँ टुकड़ो से जो निकली हूँ
कुछ अधूरी सी हूँ और तन्हाई में सिमटी हूँ
बुझी बुझी सी हूँ दिल जला के निकली हूँ
तेरे दिल तक पहुँचूँ तो मैं एक शेर बन जाऊं
तू जो पढ़ ले मुझे एक बार तो संगीत हो जाऊं
अफसाना कहूँ मैं तेरी प्रेम कहानी का
तेरे होठों को छू लूँ तो अमर मैं गीत बन जाऊं
बिखरी बिखरी सी हूँ टुकड़ो से जो निकली हूँ
कुछ अधूरी सी हूँ और तन्हाई में सिमटी हूँ
बुझी बुझी सी हूँ दिल जला के निकली हूँ
तेरे दिल तक पहुँचूँ तो मैं एक शेर बन जाऊं
तू जो पढ़ ले मुझे एक बार तो संगीत हो जाऊं
अफसाना कहूँ मैं तेरी प्रेम कहानी का
तेरे होठों को छू लूँ तो अमर मैं गीत बन जाऊं
ग़ज़ल की पंक्ति हूँ दर्द से लिपटी हूँ
बिखरी बिखरी सी हूँ टुकड़ो से जो निकली हूँ
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