हिसाब किताब ज़िन्दगी के.....

खाव्हिशो के लिफाफे में,
 हौसलों के चंद
नोट लेकर निकले थे

इस कदर महंगी थी ज़िन्दगी,
सब खर्च हो गए,
 दो वक़्त की रोटी
और एक छत जुटाने में 

हम काम करते रहे
जाने कितने सूरज
निकलते और ढलते रहे
कुछ कमाने के चक्कर में
खर्चे  बेहिसाब करते रहे

पर वो हम थे
जो हिसाब में कच्चे थे
ज़िन्दगी के तो हर
हिसाब किताब पक्के थे


गिन के दिए थे हमे 
और गिन के ले भी लिए 
 ये हम ही थे जो न समझे
 कि मरने से पहले
 आखिर कितने दिन जिए 

ज़िन्दगी के तो 
हर हिसाब किताब पक्के थे 
पर वो हम ही थे जो 
हिसाब में कच्चे थे 







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