बहता वक़्त
वक़्त का पानी बरस रहा है
पल पल लम्हा टपक रहा है
कैसे भरलूँ मैं अपनी हथेली
कि कुछ बूंदे हो जाये मेरी
दो रातों की मेड़ बनाऊं
और आज को वही रूकाऊँ
पर कब ये पानी थमता है
हर आज कल में ढलता है
लम्हा लम्हा जब गिरता है
बरसो का झरना झरता है
एक उम्र बाह जाती उसमें
यादों का दरिया बनता है
वक़्त का पानी बरस रहा है
आज ये कल में बदल रहा है
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