अकेला है -gazal

मुझे जख्मी किया जिसने वो खुद काँटों से खेला है 

मिरी कश्ती डुबाई थी वो तूफ़ान में अकेला है 


घने प्रतिशोध में जलता, जो ले बैठा हैं वो बदला  

ये उसकी आंख में कैसा पशेमानी का मेला है 


मुझे देगा तू गम जितने मैं रख लूंगा मेरा कह कर 

तिरी चाहत में क्या कुछ अब तलक मैंने न झेला है 


रहा वो आज़माईश में, वो किस मौसम से गुज़रा है 

कोई है सख्त पत्थर सा कोई मिट्टी का डेला है


बड़ी रोशन तिरी नज़रे ,बड़ी उजली ये सूरत है  

इसी का नूर है जो ये मेरी दुनिया में फैला हैं 


निधी, उनको पुकारा जो, वो आये हैं मेरे दर पर 

मिलन की आज उनसे ये बड़ी पावन सी बेला है 


~kavitaNidhi




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