इत्र की खुशबू सी मैं
इत्र की खुशबू सी मैं
इत्र की खुशबू सी बिखर के निकली हूँ
अवतार में एक नए उतर के निकली हूं
सुनो उतार लो मेरी ये नज़र अब तुम
उसके इश्क में जरा संवर के निकली हूं
अब तो दिखती हूं मैं दिलकश जो बहुत
उसकी निगाहों से निखर के निकली हूँ
तीखी ये निगाहें यू ही नहीं मेरी
रंग श्याम का आंख में भर के निकली हूं
क्यों ना करू नाज़ अदाओं पे अपनी
तुझसे सौ आशिक कत्ल कर के निकली हूँ।
दीवानी हुई अब उसकी मोहब्बत में
आशिको की बस्ती से डर के निकली हूं
बेहिसाब धड़कता है दिल मेरा निधि
लंबी सांस ले जरा ठहर के निकली हूं
~KavitaNidhi
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