एक किनारा चाहिए
डूबती नैया को यारो, एक किनारा चाहिए
स्याह काली रात को बस एक सितारा चाहिए
दुनिया की इस भीड़ में मैं खो गया हूँ इस कदर
खुद को मैं फिर ढूंढ लूँगा संग तुम्हारा चाहिए
मानता हूँ आज मेरे, और ही हालात हैं
लड़खड़ाया हूँ जरा बस एक सहारा चाहिए
लड़ रहा हूँ हर कदम ,जो बांध के सर पे कफ़न
जीत का मुझको भी अब तो सर पे सेहरा चाहिए
जीने का कुछ तो मिले मुझको बहाना ज़िन्दगी
मुझको टूटा स्वप्न मेरा फिर दोबारा चाहिए
राहों में भटका बहुत हूँ हो पसीना तर ब तर
बस निधि अब मंज़िलों का एक नजारा चाहिए
——
राहे मंजिल ढूंढ़ता हूँ, हो पसीना तर ब तर
दो घडी मैं सांस ले लूं वो ठिकाना चाहिए
——
Comments
Post a Comment