बस यही अलग था
बस यही अलग था
तुम प्यार में डूबना चाहते थे और मैं उड़ना
तुम्हारा प्यार सागर सा गहरा था
जिसमें तुम उतरते चले गए
और मेरा आसमान से विस्तृत, बंधनों से दूर,
आजाद... और मैं उसमे दूर निकल आई।
तुम आज भी डूबे हो और
मैं पंख फैलाये आकाश में हूं
आज इस ऊँचाई से उस गहराई में
कुछ नहीं दिख रहा, और जनती हूं
नहीं दिखता होगा उस गहरायी से
इस ऊंचाई का
तुम्हे अपना प्रेम का सागर मिला
मुझे मेरे प्यार का आसमान
प्यार तो था पर अलग था
वैसा ही जैसे हम अलग थे
और यही ‘अलग' हमरे प्रेम का
आदि और अंत दोनों था
~ kavita nidhi
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