मैं साम्राज्ञी
#kavita Nidhi
हूँ स्वप्न की नगरी की मैं साम्राज्ञी
हाथ में है ये कलम तलवार मेरी
सोच के घोड़े पे मैं हो कर सवार
एक कहानी हूँ मैं देखो रच रही
ये अनुभव बन गए हैं योद्धा मेरे
और अनुभूति बनी है सेना सारी
पूरी दुनिया बन गयी मैदाने युद्ध
ज़िन्दगी से लड़ रही है दुनियादारी
पृष्ठों की रणभूमि देखो सज गयी है
मैदान में ये स्वप्न टोली डट गयी है
फिर उठी जो ये कलम
तलवार सी चलने लगी
दुनिया के इन कायदो,
हर रस्म से लड़ने लगी
कटने और फिर काटने का
सिलसिला था चल रहा
चारो दिशाओं में लो देखो
घमासान सा मच रहा
स्वप्न कितने क्षत विक्षत
कितने थे धड़ से अलग
फिर भी ज़िंदा थे तड़पते,
चीखते थे बेधड़क
इनके ही इस रक्त से थी
रंग गयी तलवारे अब
ये नहीं है शब्द भर जो
रण में काटते हर तरफ
स्वप्न की लाशें गिरी हैं
किस तरह बिखरी पड़ी हैं
दर्द ( स्याही) रुपी रक्त बहता
रंग रहा है रण भी अब
युद्ध के अंतिम चरण की है तैयारी
मात देने की है आयी मेरी बारी
झूमती तलवार मेरी चल रही है
सोच के घोड़े पे सेना बढ़ रही है
पृष्ठ की रणभूमि अब तो रंग चुकी है
देखलो अब एक कहानी बन चुकी है
हूँ स्वप्न की नगरी की मैं साम्राज्ञी
हाथ में है ये कलम तलवार मेरी
#Kavita Nidhi
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