अमरबेल
उसे याद आया जब पिछले साल नीलम आई थी तो यू ही एकबार पढ़ने के बाद वो उसे गेट तक छोड़ने चला गया था तो बाग से गुज़रते हुए नीलम ने उसे नई नई कोमल अमर बेल को पेड़ के तने पर चढ़ते हुए उसे दिखाया था। क्या वक्त उसकी पत्तियाँ कितनी कोमल हल्के हरे रंग की थी
वो बोली थी देखो राजेश ये अमरबेल किस प्यार से इस पेड़ का उलंघन कर रहा था फिर वो नज़र के कोने से उसकी और देख कर दी थी। वही अमरबेल अब काफी परिपक्व हो चुकी थी। उसके पत्तो की वो कोमलता चली गई थी उसे देखने के लिए अब कोमल भावनाएं नहीं उठती थीं। उसके वले तने को काफी अंदर तक भेदे हुए थे और हरे ओर कुछ भूरापान के लिए हुए ऐसा लग रहा था कि बेल ने जिंदगी से जिंदगी के आखिरी मिनट सीख लिए थे और जान गई थी कि पेड़ प्यार करने के लिए नहीं सहारा देने के लिए हैजितना उसे लाभ ले सके ले ले । जब से ये बेल उस पेड पर चढ़ी थी तब से ये पेड सूख्ता ही चला जा रहा था और उसके काफी पत्ते झड़ गए थे। पर ना जाने किस उम्मीद और बेबसी में वो पेड आज भी अमरबेल को सहारा और पोषण दे रहा था। यूं ही सोचते सोचते उसका ध्यान अमरबेल के दूसरे सिरे पर गया जो पास के एक और लैला मजनू के पेड़ पर चढ़ गई थी। अमर बेल की बेवफाई पर उसे रश्क हो उठाl किस बेदर्दी से इस पेड़ को चुनो कर वो नए और मजबूत पेड़ की तरफ बढ़ गई थी। आज के जमाने में इसे ही कहते हैं प्रैक्टिकल होना। अभी उसके विचारों की श्रंखला बानी ही थी कि पीछे से लेखा की आवाज सुनाई दी-'सर'
उसने पलट कर देखा, लेखा हाथ में नागरीशास्त्र की किताबें पकडे खड़ी थीl
‘कैसा हुआ आज का पेपर?’
‘सब कुछ किया हुआ था. बहुत अच्छा हुआ.’
पेपर के बारे में बात करते हुए वो सीधियां चढ़ाकर ऊपर आ गए। पेपर का पूरा विवरण लेने के बाद उन्हें नागरिक शास्त्र के पेपर की तैयारी शुरू कर दीl
कॉलेज में परीक्षा की कॉपी चेक की जा रही थी। परीक्षा ख़तम हुए महीना बीत चुका था। गरमी बदस्तूर जारी थी या यू कहिए जून के मध्य में आकर उमर कुछ और गहरी हो गई थी। बदन 2 मिनट में ही पसीना पसीना हो जाता था। कहीं राहत नजर नहीं आ रही थी. कॉपी जंचने के चलते कॉलेज से थिडा लेट हो गया था। शाम ढल चुकी थी. 6:30 बज चुके थे पर धूप अभी अभी उतरी थी।
वो नहा कर नीचे बाग की तरफ बढ़ गया। यूं ही टहलते हुए फिर ना जाने क्यों वो लैला मजनू के पेड़ की कतार के करीब जा कर देखने लगा। वो अमरबेल वाला लैला मजनू का पेड़ जो अब पेड़ से ज्यादा ठूँठ लग रहा था; उस पर लिपटी अमरबेल के पत्ते अब झड़ चुके थे और उसकी डांडिया जलकर पेड़ से कुछ अलग हो गयीं थी पर अपनी चाप जरूर तने पर छोड़ चुकी थीं.
और वहीँ अमर बेल का दूसरा सिरा बराबर के वेद को मजबूती से अपनी गिरफ्त में ले चुका था.
या फिर ये कहिये की पुराने हारे हुए पेड़ को छोड़ कर नए पेड़ के साथ
नयी जीवनी के साथ बढ़ गया था.
उसने व्यंगात्मक मुस्कान से बेल की नयी हरी पत्तियों को देखा और कहा बेवफाई की इससे बड़ी मिसाल क्या होगी?
नीलम ने भी उसके साथ यही किया, जिस हालत में उसे पैसों की जरूरत थी वो बिना फीस लिए उसे टूशन पढ़ता रहा और वो उसके दिल के साथ खेलती रही क्या क्या वेड किये थे उसने; वो वेड निभाता रहा और नीलम,,,,किस बेदर्दी से उसे छोड़ कर उसकी भावनाओ से खेल कर उससे काम निकाल कर चली गयी और प्रिंसिपल के बेटे से शादी कर ली. वि भी अमरबेल ही थी.
इस ख्याल के आते ही उसके जबान कैसैली हो गयी और उससे थूक सटका न गया.
बाग़ के सभी पौधे मुरझाये हुए थे फूलों के पेड़ मात्र टहनिया रह गए थे. पैर मौसम में जो नीरसता थी वो अब शाम के होने से कुछ काम हुई थी पैर धुप की गर्मी अपने अस्तित्व के कुछ देर पहले मौजूद होने का आभास अभी भी जमीन से उठती गर्माहट से दे रही थी. तभी उसने लेखा को सामने से आते देखा!
लेखा ने आते ही कहा- ‘ सॉरी थोड़ा लेट हो गयी, दोपहर में थोड़ा आँख लग गयी थी’ और वो दोनों ऊपर कमरे में चले गए.
लेखा आजकल बीएड की तैयारी कर रही थी
१७ अगस्त को एंट्रेंस एग्जाम था इसीलिए तैयारी जोरो से चल रही थी राजेश को लेखा पर भरोसा था वो जरूर परीक्षा पास कर लेगी
वो काफी होनहार छात्र थी और इसलिए राजेश की बा की सभी छात्रों में सबसे प्रिय भी. बी अ में ससम्मान उत्त्रीण हुई थी
लेखा के आने से वो नीलम की यादो से जुड़े बो कड़वे पल कुछ देर के लिए भूल जाता था और उसके सवालो और तर्कों में तलीन हो जाता था.
अगस्त बीत चुका था और सितम्बरमदय मद्यय में था बरसात ने गर्मी को लगभग धो दिया था और पेड़ो में भी नयी जान फूंक दी थी.आज B E D का नतीजा आना था. और बोबेचैनी से लेखा का इंतज़ार कर रहा था की कब वो आ कर अपने सेलेक्ट होने की खबर सुनाएगी।
वो बेचैनी में बाग़ में टहलने लगा, उसके कदमो में अजीब सी तेजी थी हाथ पीछे बांधे सर झुकाएं वो चहल कदमी कर रहा था. ५-६ कदम चल कर मुड़ जाता और लौट जाता ऐसा लग रहा था जैसे एक बिंदु से दुसरे बिंदु तक दोलन कर रहा हो. फिर अचानक से उसी लैला मजनू के पेड़ को खड़ा हो कर देखने लगा.
वो पेड़ जो कुछ महीनो पहले मुरझा चुका था बरसात के आने पर या शायद उस अमरबेल के उतर जाने से कुछ जीवंत दिख रहा था.
१५-२० दिन पहले ही माली आकर गुलाब की कलमे लगा गया था जिनपर अब नन्ही नन्ही कलियाँ आ गयीं थी. लगता है माली अमरबेल को भी पूरी तरह से उखाड़ कर फेंक गया था क्योंकि अब अमरबेल का नामोनिशान नहीं दिख रहा था.
तभी लेखा हाथ में मिठाई का डब्बा लिए अवतरित हुई. और ख़ुशी से चहकती हुई बोली, सर मेरे B E D एंट्रेंस क्लियर हो गया है और मुझे अपने ही कॉलेज में मिल गया है. १५ से क्लास स्टार्ट होंगी
आप मिठाई खाइयए। और वो फिर ऊपर कमरे में चले गए. िपर जा कर केखा ने पुछा सर क्या आप चाय पिएंगे? आज मैं बना कर लाती हूँ. और वो किचन की तरफ बढ़ गयी. राजेश को उसका ये अपनापन बहुत भला सा लगा. तभी बालकनी से आता हुआ हवा का रक झोंका उसके बालो को सहलाते हुए निकल गया.
राजेश ने आवाज लगते हुए कहा- ‘ लेखा वो लाल ढक्कन के डब्बे में चाय पट्टी और उसके पास वाले में चीनी हैं.
और वो बालकनी में जा कर बहार देखने लगा. वो अंदर गया, तब तक लेकलेखा चाय ले आयी और प्यारी सी मुस्कान के साथ प्याला इसके हाथ में पकड़ा कर वही पलंग पर बैठ गयी.
पिछले कुछ महीनो में लेखा का यूँ रोज राजेश के पास आना दोनों की नजदीकियां बढ़ा गया था. वो दोनों एक आत्मीयता महसूस करने लगे थे। अब केखा में पहले जैसा वो तकलीफ और ही हक़ भी नहीं रही थी। वो अब राजेश से बात करते करते उन्मुक्त खिलखिला कर है देती थी और कई बार शरारत भरी नज़रो से इसे देख कर मुस्कुरा भी देती थी
अक्टूबर आ चूका था लेखा B E D पढ़ाई के लिए उससे पढ़ने आया करती थी और उनकी नज़दीकियां प्रतिदिन बढ़ रही थी और उधर वो लैला मजनू का पेड़ बरसात के बाद से नयी पत्तियो के साथ नै जीवनी ले चुका था. वो फिर से खिला खिला खड़ा था और उसके पास में ही एक नयी अमरबेल उसका आलिंगन करते हुए अपनी नयी पत्तियों के साथ ऊपर बढ़ रही थी।
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