सौदेबाज़ी

सौदेबाज़ी का एक हुनर मैंने माँ से सीखा
मैं एक रोटी मना करती वो दो पे अड़ जाती
मैं पहले ना करती फिर एक पे मान जाती
इस तरह हर बार वो अपनी बात मनवा लेती 

Comments

Popular posts from this blog

Kavita- मैं राम लिखूंगी

चाय

मन मेरा बेचैन है