चिठ्ठी
तेरी चिठ्ठी जब भी आती थी
एक खुशबू साथ लाती थी
तेरी लिखी वो एक चिठ्ठी
जाने कितना कुछ कह जाती थी
लिखे शब्दों की बनावट

असमय विराम लगाना
कुछ शब्द गहरा बनाना
कुछ अधूरे छोड़ देना
और वो बिन वजह की जगह
सब बोलते थे , कुछ कहते थे.
कुछ बिंदु तेरी कश्मकश बताते
और गहरे अक्षर तेरा गुस्सा जताते
और वो अकारण
अनुच्छेद बदल कर
वो तू जो भी छुपाती
चिठ्ठी वो सब कह जाती
शब्दों के बीच छोड़ी जगह
तेरी ख़ामोशी सी लगती थी
मैं उंगलियों से छूता था
तो ये महसूस होती थी
सब बोलते थे , कुछ कहते थे.
कुछ बिंदु तेरी कश्मकश बताते
और गहरे अक्षर तेरा गुस्सा जताते
और वो अकारण
अनुच्छेद बदल कर
वो तू जो भी छुपाती
चिठ्ठी वो सब कह जाती
शब्दों के बीच छोड़ी जगह
तेरी ख़ामोशी सी लगती थी
मैं उंगलियों से छूता था
तो ये महसूस होती थी
मेरे नाम का पहला अक्षर
तू जिस तरह बनाती थी
उसकी अलग लिखावट बताती थी
की तू मुझे कितना चाहती थी
तेरी चिठ्ठी जब भी आती थी
तेरी खुशबू साथ लाती थी
Comments
Post a Comment