पुरानी हूं मैं

पुरानी हूं मैं 


बस एक लहर नहीं हूं मैं , मौजो की रवानी हूं मैं 

छोटा सा वाकया नहीं,एक पूरी कहानी हूं मैं 


जितना जानते हो मुझे, बस उतना काफी नहीं है 

जितनी दिखती हूँ  उससे, थोड़ा ज्यादा स्यानी हूँ मैं 



चार पन्ने पढ़ किताब के, भला कैसे समझ लोगे तुम? 

रामायण, महाभारत पढ़ी है? वैसी, कोई पोथी पुरानी हूं मैं  


वो सोचते है कि उनसे, प्यार करती हूं मैं बहुत 

नापोगे तो जानोगे, कि पूरी दीवानी हूं मैं


ना चार दिन की चांदनी,और ना एक रात सुहानी 

ज़िन्दगी का एक हिस्सा नहीं, एक पूरी ज़िंदगानी हूँ मैं 


आजकल सा प्यार नहीं, कद्रदान हूं, निधि उस इश्क की  

दिखती हूँ नई पर दिल से, कई पीढ़ी पुरानी हूं मैं


~KavitaNidhi

———-




Comments

Popular posts from this blog

Kavita- मैं राम लिखूंगी

चाय

मन मेरा बेचैन है