जिद्द

                  


जिद्द
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हमसफ़र बनके हार, साथ निभाती है रही 
मैं सीखती रही ये जो भी सिखाती हैं  रही 
टूट के बिखरी तो थी मैं भी,कई बार मगर 
मेरी उम्मीद थी जो जोश  बढाती ही रही 

चाँद ने लूटी थी जब मेरे सितारों की चमक 
आस के जुगनू लिए, रात काटी सुबह तलक 
पेँच किस्मत की पतंग ने लड़ायें थे जो जरा 
डोर मैं सब्र की हाथो में बस थामे ही रही 
~kavitaNidhi

तेज तूफानों ने जो वार कई बार किये 
मैंने टूटी हुई कश्ती में हाथ पतवार किये 
कभी जो पैर मेरे डगमगाए से थे जरा 
मेरी नज़रे मगर साहिल के उस पार रहीं 

जो भी लिखती रही मैं गीले इस साहिल पे 
उसे मिटा गयी हर बार आके ये लहरें 
मैंने सीखा हैं इन्ही लहरों से जिद्द करना मगर 
घरोंदे रेंत के, ये गिरती, मैं बनाती ही रही 

मैं सीखती रही ये जो भी सिखाती हैं  रही..... 
हमसफ़र बनके हार, साथ निभाती है रही.... 
~ kavitaNidhi
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