वो कहानी चलने दी
ख़त्म करना मुश्किल था बहुत, तो हमने वो कहानी चलने दी
नींद टूटी, फिर भी आँख मूँद, ख्वाबो की ये रवानी चलने दी
टूट के बिखरना और फिर, बिखर के संभलना सीख लिया हमने
यूँ मरना आसान नहीं था, तो बस हमने ये ज़िंदगानी चलने दी
पता है सुलह नहीं हो पाएगी तेरी मेरी इस बहस की कभी
इस बहाने बात होती हैं, तो हमसे ये लड़ाई तुम्हारी चलने दी
न तूफ़ान पे था जोर कोई, और न पतवार ही थी हाथ मेरे
था कोई और ही साहिल मेरा, पर मैंने किनारे ये कश्ती लगने दी
जतन सारे किये कि पसंद उनकी बनूँ, जिक्र तो करतें है वो
पीठ पीछे ही सही, मैंने ये सोच उनको बुराई हमारी करने दी
वो मजा कहां है बता, आज कल के इन गानों में निधि
बस चुकी है दिल में जो,शामोपहर वो गजल पुरानी चलने दी
~kavitaNidhi
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