प्रकति का नियम है

कभी साथ रहा करते थे,प्यार करते थे ,और कभी-कभी थोड़ा लड़ते थे 

हर चीज पर अपना  हक जताते, छोटी-छोटी बातों पर कितना  झगड़ते थे  

टीवी तो एक ही था और अपने program से पहले, कैसे रिमोट छुपाकर रखते थे 

धीरे से  दूसरे पर नज़र रखते, और कैसे बात बात पर एक दुसरे की शिकायत करते थे 


याद है वो ताकिया जो हम दोनों को पसंद था,ख़ासियत ये कि बाकी से वो थोड़ा ज्यादा नरम था 

रूम में रात को जल्दी डिनर के बाद आकर, वो  तकिया ले सोने का नाटक करते थे 


और वो अपना फ़्रीज़, जिसके रंग पर हम दोनों सहमत थे, हम दोनों को ही ग्रे से ज्यादा रेड पसंद था 

पानी की बोतल कौन भर कर फ़्रीज़ में रखेगा, इस बात पर तकरीबन हर रोज़ ही अड़ते थे 


और हां वो गाजर का हलवा, वो  मुरब्बा याद है, जो हम साथ छुप  कर चोरी करते थे 

पर अगर किसी की मार पड़ने का नंबर आये तो आँख के इशारे पर  ही बात बदलते थे 


उफ्फ वो भी क्या दिन थे बचपन के, जब हम दोनों इतना झगड़ते थे

पर हमे पता है, दिल से हम दोनों एक दुसरे पर  कैसे जान छिड़कते थे 


वक़्त के साथ धीरे धीरे, हालात बदल गये, तू और मै कब घर से ऐसे निकल गए  


भाई आज हम दोनो के दो अलग घर हैं और देख ना, अब हम दोनों के ही पास ग्रे फ़्रीज़ हैं 


क्योकि घर के इंटीरियर से ग्रे ही मैच करता है, और अब इतने बड़े हो गए हैं की फ्रीज़ के कलर से क्या ही फर्क पड़ता है 


पर वो रेड फ़्रीज़ जब आया था, वो दिन मेरी यादों में आज भी ऐसे ताज़ा रहता है। 

वैसे ही जैसे वो घर, घर का आँगन, हमारा कमरा और तेरे साथ बिताया हर एक लम्हा रहता है  


समझ नहीं आता क्यों एक पेड़ की डाली पर खिले दो फूल ऐसे जुदा हो जाते हैं 

और कहीं दूर जाकर एक दुसरे से अलग, अपना अपना नया आशिया बनाते हैं।


यही प्रकति का नियम है हर कोई निभा रहा है 

बस खुश हूँ की आज राखी है और भाई घर आ रहा है  






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