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Showing posts from January, 2020

कल आज और कल

मेरा आज ये कहता है मेरा आज ये कहता है एक रात का फेरा ले मुझे कल फिर आना है कल बन कर आज तेरा फिर कल हो जाना है किस्सा दो रातों का जीता ये ज़माना है न कल वो मेरा था न कल ये मेरा है कल आज ही जीना है बस आज ही मेरा है इन दो रातों के बीच मेरा आज अकेला है इस आज से पहले भी अनजान अँधेरा है इस आज के जाते ही अनजान अँधेरा है ये वक़्त नहीं रूकता इसको तो जाना है मेरा आज पराया हो मुझे इसको जीना है यादों के धागों में हर पल को पिरोना है मुझे आज में  जीना है मुझे आज में  जीना है 

नौका पार लगनी है

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हाथ ले पतवार हो तैयार नौका पार लगनी है सांसों को तू खींच, मुट्ठी भींच नौका पार लगनी है  तूफानों  को चीर, हो गंभीर  नौका पार लगनी है  डर को तू संहार, मत तू हार  नौका पार लगनी है  इच्छा कर बलवान, ले तू ठान  नौका पार लगनी है  तीखी धूप का हो वार, तन बेजार नौका पार लगनी है  किस्मत को ललकार, कर ऐलान नौका पार लगनी है  बन खुद का तारणहार, लहरें तार  नौका पार लगनी है सागर को तू मोड़, सीमा तोड़  नौका पार लगनी है  दूरी मत ये माप, नज़ारे गाड़  नौका पार लगनी है 

गवाही...

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समेटे दर्द अंचल में, नमी ये मेरी आँखों की गवाही दे रही सबको मेरे बर्बाद होने की ये टूटे दिल के टुकड़े अब कहाँ ले कर मैं जाऊंगी यहाँ हर नज़र मुझ पर है इन्हे कैसे छुपाऊँगी तुम्हे दिल तोड़ने का हक़, भी तो मैंने दिया था दिल जीतने की ख़्वाहिशें किस को जताऊँगी तेरे बंधन में बंध कर भी ये दिल आज़ाद सा था तेरी यादोँ के बंधन को मैं कैसे तोड़ पाऊंगी मेरी हर बात में  हरदम तेरा ही ज़िक्र आता था बिना तेरे न जाने अब मैं क्या किसको बताऊंगी उड़ा ये रंग गलों का, खफा ये  बात होठोँ की गवाही दे रही सबको मेरे बर्बाद होने की

ग़ज़ल की पंक्ति हूँ

ग़ज़ल की पंक्ति हूँ दर्द में लिपटी हूँ बिखरी बिखरी सी हूँ टुकड़ो से जो निकली हूँ कुछ अधूरी सी हूँ और तन्हाई में सिमटी हूँ बुझी बुझी  सी हूँ दिल जला के निकली हूँ तेरे दिल तक पहुँचूँ तो मैं एक शेर बन जाऊं तू जो पढ़ ले मुझे एक बार तो संगीत हो जाऊं अफसाना कहूँ मैं तेरी प्रेम कहानी का तेरे होठों को छू लूँ  तो अमर मैं गीत बन जाऊं ग़ज़ल की पंक्ति हूँ दर्द से लिपटी हूँ  बिखरी बिखरी सी हूँ टुकड़ो से जो निकली हूँ 

हिसाब किताब ज़िन्दगी के.....

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खाव्हिशो के लिफाफे में,  हौसलों के चंद नोट लेकर निकले थे इस कदर महंगी थी ज़िन्दगी, सब खर्च हो गए,  दो वक़्त की रोटी और एक छत जुटाने में  हम काम करते रहे जाने कितने सूरज निकलते और ढलते रहे कुछ कमाने के चक्कर में खर्चे  बेहिसाब करते रहे पर वो हम थे जो हिसाब में कच्चे थे ज़िन्दगी के तो हर हिसाब किताब पक्के थे गिन के दिए थे हमे  और गिन के ले भी लिए   ये हम ही थे जो न समझे  कि मरने से पहले  आखिर कितने दिन जिए  ज़िन्दगी के तो  हर हिसाब किताब पक्के थे  पर वो हम ही थे जो  हिसाब में कच्चे थे 

बहता वक़्त

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वक़्त का पानी बरस रहा है  पल पल लम्हा टपक रहा है  कैसे भरलूँ मैं अपनी हथेली  कि कुछ बूंदे हो जाये मेरी  दो रातों की मेड़ बनाऊं  और आज को वही रूकाऊँ  पर  कब ये पानी थमता है  हर आज कल में  ढलता है    लम्हा लम्हा जब गिरता है  बरसो का झरना झरता है  एक उम्र बाह जाती उसमें  यादों का दरिया बनता है  वक़्त का पानी बरस रहा है  आज ये कल में बदल रहा है   

जीवन का गाड़ित। ..

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जीवन का गाडित ये कैसा है जीवन का गणित ये कैसा है जोड़ घटा की दौड़ मे   कुछ गुना बना लूँ हर तरफ यही तो भाग है हर तरफ यही तो भाग है भाग से क्या क्या भाग हो गया क्या इसका तुमको अंदाज है? ये क्या अंको का खेल है तुमको बतला दूँ जीवन का गणित ये कैसा है तुमको समझा दूँ दिल जोड़ो खुशियां गुना बढ़ा लो घटा दूरियां प्यार बढ़ा लो जब दिल जुड़ते है गम घटते है जब साथ हो सबका हम बढ़ते है भाग भी उसको गुना करेगा मेहनत से जब हम बढ़ते है जीवन का गणित कुछ ऐसा है तुमको समझा दूँ जीवन का गणित कुछ ऐसा है तुमको समझा दूँ

आस जगी है.....

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         गीली गीली मिटटी पर अब जैसे हलकी घास उगी है ऐसे मेरे मुरझाये से मन में कोई आस जगी है तारो का आँचल ये ओढ़े चंदा की बारात सजी है सूरज की आहुति लेके जैसे प्यासी रात जगी है इतना कुछ कह देने पर भी जैसे कोई बात बची है आज जुबां पर ताले हैं तो आँखों को सौगात मिली है  काली सी बदली के झरते हल्की पावनी आज चली है  मिटटी की सौंधी सौंधी सी उसमें खुशबू साथ बसी है  खोये खोये ख्वाबों को अब एक नयी पहचान मिली है  चाहत को चाहने की चाहत देखो मुझमे आज जगी है  गीली गीली मिटटी पर अब जैसे हलकी घास उगी है ऐसे मेरे मुरझाये से मन में कोई आस जगी है