Gazal- दफ्तर से लौटा हूं
Gazal- दफ्तर से लौटा हूं ये रिश्ता जो बादल का है इस जमी से ये माना मेरा भी है वैसा तुम्हीं से है आवारगी को मेरी थाम लेती बिखर के मैं बून्दो सा महकूँ तुम्ही से हुई पूरी छुट्टी वो मायके से आई के दफ्तर से लौटा हूं घर मैं खुशी से कि बच्चों के आने से रौनक है घर में है जन्नत मेरा घर इन्ही की हंसी से जो तुम आ गयी हो तो रोशन जहां है कि लगता ये घर, तो घर बस तुम्हीं से वो सीटी की आवाज़,चाये की खुशबू कि हर चीज में है मजा बस तुम्हीं से निधी साथ हर पल ये उसका मैं चाहूँ है ख्वाहिश नहीं और कुछ जिंदगी से ~kavitaNidhi 122 122 122 122 निगाहें मिलाने