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Showing posts from October, 2024

Gazal- दफ्तर से लौटा हूं

  Gazal- दफ्तर से लौटा हूं   ये रिश्ता जो बादल का है इस जमी से ये माना मेरा भी है वैसा तुम्हीं से है आवारगी को मेरी थाम लेती  बिखर के मैं बून्दो सा महकूँ तुम्ही से हुई पूरी छुट्टी वो मायके से आई  के दफ्तर से लौटा हूं घर मैं खुशी से कि बच्चों के आने से रौनक है घर में है जन्नत  मेरा  घर इन्ही की  हंसी से जो तुम आ गयी हो तो रोशन जहां है  कि लगता ये घर, तो घर बस तुम्हीं से वो सीटी की आवाज़,चाये की खुशबू कि हर चीज में है मजा बस तुम्हीं से निधी साथ हर पल ये उसका मैं चाहूँ  है ख्वाहिश नहीं और कुछ जिंदगी से ~kavitaNidhi 122 122 122 122 निगाहें  मिलाने 

Gazal- रुका वक़्त

Gazal- रुका वक़्त वहीं पे वक़्त रुका, वो ही समा है अब तक तेरे जाने का वो पल, ऐसे थमा है अब तक  नहीं मैं रोया हूं उस दिन से कभी तेरे लिए मेरी आँखो मे वो मंज़र यू जमा है अब तक  बुझी सी जिंदगी सायो में भटकता हूँ मैं तेरी यादों से ही महफ़िल में शमा है अब तक चलूँ मैं कैसे बता, दुनिया, जमाने के संग मेरा मन तुझमें ही ऐसा जो रमा है अब तक नहीं है भूले मुझको याद वो करते हैं    निधि  इसी एक बात का तो खुद पे गुमा है अब तक  ~kavitaNidhi हमें तो लूट लिया मिल के हुस्नवालों ने 12221 1222

Gazal- खिलता है घर बेटियों से

Gazal- खिलता है घर बेटियों से सबक ये मिला है मुझे आशिकी से के होती मुहब्बत नहीं हर किसी से  जो पाया तुम्हें हर खुशी मिल गई है  नहीं है गिला अब मुझे जिंदगी से नहीं मुझको जाना यहां पर किसी ने  कि पहचान यूं तो मेरी है सभी से  कि कहने को तो कह रहा वो हंसी में ये कड़वाहतें पर,छुपी ना किसी से  थी गैरत बड़ी ना झुका वो कहीं पे झुका आगे औलाद के सर ख़ुशी से  है जीवन की मेरे निधि बस इसी से कि खिलता है घर बेटियों की हंसी से ~kavitaNidhi  Nigahen milane ko jee chahata hai  122 122 122 122

Gazal- इश्क़ का नशा

इश्क़ का जो नशा ये चढ़ता है  मुश्किलो से ये दिल संभलता है  धुंध छट जाए तो दिखाई दे  वर्ना हर शक्स तुझ सा लगता है  प्यार की इस तरह खुमारी है बे सबब दिल मेरा धड़कता है  क्यों मैं चाहत में हूँ तेरी पागल  प्यार पे जोर कहाँ चलता है  जिस तरह मुझसे वो मिला है निधि  दिल का दिल से कोई तो रिश्ता है ~kavitaNidhi 2122 1212 22

Gazal-वक़्त बदलता है

  2122 1212 22 एक जैसा कहां ये चलता है  हर घड़ी वक़्त  ये  बदलता है  आज तेरा है कल मेरा होगा  सिलसिला जीत का यू चलता है  आंसुओं  के शरारे गिरते हैं   हो धुआं दिल मेरा जो जलता है  राहें-मंज़िल दिखे है धुंधली सी  अश्क़ बन ख्वाब जो पिंघलता है  सच को सच जब भी बोलती हूँ निधि  मेरा लहज़ा सभी को खलता  है  ~kavitaNidhi धुँधला सा सब यहाँ नज़ारा है   दिख रहा हर नज़ारा धुंधला सा  ज़िन्दगी ऐसी एक खुमारी  है  इश्क़ का  यूँ  खुमार चढ़ता है  मुश्किलो से नशा उतरता है  -/————- इश्क़ का जो नशा ये चढ़ता है  मुश्किलो से ये दिल संभलता है  धुंध छट जाए तो दिखाई दे  वर्ना हर शक्स तुझ सा लगता है  प्यार की इस तरह खुमारी है बे सबब दिल मेरा धड़कता है  क्यों मैं चाहत में हूँ तेरी पागल  प्यार पे जोर कहाँ चलता है  जिस तरह मुझसे वो मिला है निधि  दिल का दिल से कोई तो रिश्ता है ~kavitaNidhi ——— टूट के दिल मेरा जो बिखरा है  आसमा आतिशी सा दिखता है  सोचने जो लगा वो ...

दोस्ती अज़ीज़ है

कहो पराया पर वो दिल के बड़े करीब हैं  ये दोस्ती मेरे यार की क्या नायब चीज़ है  यू तो नहीं है खून का रिश्ता कोई हमारा   पर तू यार मेरे मुझे अपनों से भी अज़ीज़ है

अकेला है -gazal

मुझे जख्मी किया जिसने वो खुद काँटों से खेला है   मिरी कश्ती डुबाई थी वो तूफ़ान में अकेला है  घने प्रतिशोध में जलता, जो ले बैठा हैं वो बदला   ये उसकी आंख में कैसा पशेमानी का मेला है  मुझे देगा तू गम जितने मैं रख लूंगा मेरा कह कर  तिरी चाहत में क्या कुछ अब तलक मैंने न झेला है  रहा वो आज़माईश में, वो किस मौसम से गुज़रा है  कोई है सख्त पत्थर सा कोई मिट्टी का डेला है बड़ी रोशन तिरी नज़रे ,बड़ी उजली ये सूरत है   इसी का नूर है जो ये मेरी दुनिया में फैला हैं  निधी, उनको पुकारा जो, वो आये हैं मेरे दर पर  मिलन की आज  उनसे  ये बड़ी   पावन सी बेला है  ~kavitaNidhi

कमियां

 अभी भी कमियां हैं बहुत, उन्हें संवार रही हूं  आपके दिए सुझाव, कविता में उतार रही हूं बस लिख रही हूं जो दिल कह रहा है लिखने को आप बीते कुछ किस्से कलम से उभार रही हूं  आपके दिल तलक पहुँचे तो मुकम्मल है जिंदगी वर्ना तो यूँ समझो कि बस इसे गुजार रही हूं

इत्र की खुशबू सी मैं

  इत्र की खुशबू सी मैं इत्र की खुशबू सी बिखर के निकली हूँ  अवतार में एक नए उतर के निकली हूं  सुनो उतार लो मेरी ये नज़र अब तुम  उसके इश्क में जरा संवर के निकली हूं अब तो दिखती हूं मैं दिलकश जो बहुत उसकी    निगाहों    से निखर के निकली हूँ  तीखी ये निगाहें यू ही नहीं मेरी रंग श्याम का आंख में भर के निकली हूं  क्यों ना करू नाज़ अदाओं पे अपनी  तुझसे सौ आशिक कत्ल कर के निकली हूँ।  दीवानी हुई अब उसकी मोहब्बत में  आशिको की बस्ती से डर के निकली हूं  बेहिसाब धड़कता है दिल मेरा    निधि लंबी सांस ले जरा ठहर के निकली हूं  ~KavitaNidhi