ना तुमने कुछ कहा और ना मैंने
ना तुमने कुछ कहा और ना मैंने सब ख़ामोशी से हो गया याद है मुझे, तुमने चुपचाप बस ख़ामोशी से देखा था और मैंने बस नज़रो को झुका लिया था तुमने मेरी गिरी किताब उठा ली थी और मेरी तरफ धीरे से बढ़ा दी थी मैंने संकोच में जल्दी से ले ली थी और फिर हलके से मुस्कुरा दी थी ना तुमने कुछ कहा था और ना मैंने सब ख़ामोशी से हो गया और, फिर कई बार दिखे थे तुम आते जाते कॉलेज में कई जगह यूं ही मिल जाते कभी तुम देखते और मैं मुस्कुराती और कभी मैं देखती और तुम हंस देते लम्बा चला था ये सिलसिला इन मुलाकातों का बिन कहे चुपचाप नज़रो से हुई इन बातों का कई बार तुमने मेरे मिसिंग नोट्स, डेस्क पर छोड़े थे और मैंने कई बार थैंक यू नोट, तुम्हारे लिए छोड़े थे ना तुम कुछ कहते और ना मैं सब ख़ामोशी से हो रहा था याद है मेरे बीमार होने पर ,तुम कैसे परेशान हुए थे पूरी रात हॉस्पिटल के रूम के बहार खड़े रहे थे सवेरा होते ही, परमिशन ले, रूम में मिलने आये थे चेहरे पे दर्द था, तब भी तुम कहाँ कुछ कह पाए थे...