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Showing posts from March, 2020

ख्वाहिशे ही ज़िन्दगी

जरूरते दे रही है कन्धा मेरी इन मृत ख्वाइशों को मर कर भी रखा है  ज़िंदा इसने इनकी फरमाइशों  को जरूरते दे रहीं हैं कन्धा, मेरी मृत ख्वाईशो को  मर कर भी रख्खा है  जरूरतों  की फरमाईश को पूरा करने  मेरी ख्वाईशो ने क़ुरबानी दी है   ना चीर पाऊंगा इसे था मैंने ये मान लिया भीड़ की दिशाओं में ही मैंने रुख था मोड़ लिया बगावती न हो उठें ये उनका सर कुचल दिया मैंने अपनी ख्वाईशो को इतना गहरा दफ़न किया आँख मूंदे ख्वाइशे कब्र में पड़ी रहीं अपनी जान के लिए ये इतना भी लड़ी नहीं एक दिन न जाने क्यों  कैसी ये हवा चली  खिज़ा के सूखे बाग़ में   फिर नमी सी भर गयी  सूखी दिल की मिट्टी को कुछ उस तरह से तर किया  बदलो ने प्यार के  कि मौसम  ही बदल दिया ख्वाईशो की कब्र पे अब एक पौधा उग गया नन्ही कलिया खिल उठी और एक फूल लग गया फूल रूप में नयी ख्वाइशे ये जग गयी कैसी ये बरसात थी कि ज़िन्दगी बदल गयी बरसात के इस पानी की एक धारा बह उठी नदी सी  उमड़ पड़ी किस ओर जाने चल पड़ी ज़िन्दगी की चाह में ये इस कदर मचल ...

तब हम बच्चे हुआ करते थे...

तब हम बच्चे हुआ करते थे...  लड़ते थे हर रोज पर दोस्त पक्के हुआ करते थे  लोग कहते है की तब हम बच्चे हुआ करते थे  पापा की एक डाँट से हम उदास हुआ करते थे  छिपा के गलतियाँ छोटी परेशान हुआ करते थे  मन के हम साफ़ और कितने सच्चे हुआ करते थे  लोग कहते हैं की तब हम बच्चे हुआ करते थे  तोहफे थे खजाने, गुल्लक बैंक हुआ करते थे ऑफिस ऑफिस, घर घर बस खेल हुआ करते थे दुनियादारी में हम जरा कच्चे हुआ करते थे लोग कहते हैं की तब हम बच्चे हुआ करते थे सितारों में भी अपने ठिकाने हुआ करते थे  सपनो की दुनिया के ज़माने हुआ करते थे हर ख्वाब ज़िन्दगी के सच्चे हुआ  करते थे  लोग कहते हैं की तब हम बच्चे हुआ करते थे  उड़ने की चाहत, अरमान आसमानी हुआ करते थे  रिश्तों के ये धागे बड़े ही रूहानी हुआ करते थे  कच्ची थी बातें पर वादों के पक्के हुआ करते थे  लोग कहते हैं की तब हम बच्चे हुआ करते थे वो रातें वो दिन भी बड़े अच्छे हुआ करते थे लोग कहते हैं की तब हम बच्चे हुआ करते...

वक़्त ये भी गुज़र जायेगा

थोड़ा मुश्किल वक्त है माना थोड़ा सा सख़्त है पर वक़्त ये भी गुज़र जायेगा कल खुशनुमा महौल फिर आएगा दोस्तों से मिल न भी पाओ अगर कॉल पर बात करना जरूरी है ये माना की थोड़ी मजबूरी हैं पर मुस्कुराना भी तो जरूरी है हवाएं न हो खुशगवार भले ही ज़िन्दगी फिर खिल ही जाएगी थोड़ा इंतज़ार करना हो हमें पर कोई सूरत तो निकल ही जाएगी लोग जंगे सब भूल जाते है जब ज़माने कई बीत जाते हैं किस तरह हँस के लड़ें थे हम बस किस्से यही याद रह जाते है थोड़ा मुश्किल वक्त है माना थोड़ा सा सख़्त है वक़्त ये भी गुज़र जायेगा कल खुशनुमा माहौल फिर आएगा वक़्त ये भी गुज़र जायेगा.......

ठहरना ही भूल गयी

हर हुनर सिख के उतरी थी मई इस दौड़ मैं मगर जीत के निकली तो जाना की मैं ठहरना ही भूल गयी

सौदेबाज़ी

सौदेबाज़ी का एक हुनर मैंने माँ से सीखा मैं एक रोटी मना करती वो दो पे अड़ जाती मैं पहले ना करती फिर एक पे मान जाती इस तरह हर बार वो अपनी बात मनवा लेती 

प्यार और जिद

जिद न कर साथ निभाने की साथ जीने और साथ मरने की इस जिद ने ही उन्हें लैला मजनू बना दिया वार्ना क्या कृष्ण राधा ने प्यार नहीं किया?

जिद

हमसफ़र बानी शिकस्त साथ चलती रही मैं  वो सीखती रही जो ये सिखाती रही टूटी तो मैं थी कई बार मगर उम्मीद ही थी जो हौसला बढाती रही सूरज ने था जब बदलो का पर्दा किया मैं अँधेरे में दिए हिम्मत के जलती रही चाँद ने जब लूटी थी मेरे सितारों की चमक मैं  साहस के जुगनुओं से रातें जगमगाती रही हवाओं ने कभी जब बदला था रुख अपना मैं मेहनत का लंगर डाल नौका बढाती रही किस्मत की पतंग ने भी लड़ाये थे पेंच जब डोर मैं सब्र की हाथों में थामे ही रही तेज तूफानों ने जो थे वार कई बार किये मैंने टूटी हुई कश्ती में हाथ पतवार किये कभी जो पैर मेरे डगमगाए थे जरा मेरी नज़रे पर साहिल के उस पार रही जो भी लिखा था गीले से साहिल पे मैंने सागर की ये लहरे उसे मिटाती ही रही मैंने सीखा है इन लहरों से जिद करना मगर घरोंदे रेत के, ये गिरती, और मैं बनती ही रही

चिठ्ठी

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तेरी चिठ्ठी  जब भी आती थी एक खुशबू साथ लाती थी तेरी लिखी वो एक चिठ्ठी जाने कितना कुछ कह जाती थी लिखे शब्दों की बनावट  असमय विराम लगाना कुछ शब्द गहरा बनाना कुछ अधूरे छोड़ देना और वो बिन वजह की जगह सब बोलते थे , कुछ कहते थे. कुछ बिंदु तेरी कश्मकश बताते और गहरे अक्षर तेरा गुस्सा जताते और वो अकारण अनुच्छेद बदल कर वो तू जो भी छुपाती चिठ्ठी वो सब कह जाती शब्दों के बीच छोड़ी जगह तेरी ख़ामोशी सी लगती थी मैं उंगलियों से छूता था तो ये महसूस होती थी मेरे नाम का पहला अक्षर  तू जिस तरह बनाती थी  उसकी अलग लिखावट बताती थी  की तू मुझे कितना चाहती थी  तेरी चिठ्ठी जब भी आती थी  तेरी खुशबू साथ  लाती थी 

माँ तू यहाँ है

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मैं कब से सोई नहीं वैसे  कभी सोई थी तेरी गोद में जैसे  आलिशान बिस्तर है मखमली चादर  पैर तेरी साड़ी से आती खुशबू कहाँ है? कितने ही तालो में सुरक्षित हूँ मैं  तेरी गोद सा मेहफ़ूज़ एहसास कहाँ है? याद है मुझको तेरी उंगली पकड़ना  और वो मेरा बहकते कदमो से चलना  अब थक गयी हूँ चल चल कर मैं  वो आगे बढ़ने का निडर जज्बा कहाँ हैं?  तेरी उँगलियों ने दिखाए थे जो सितारे  वो और उन्हें पाने की चाहत कहाँ हैं? तेरा वो प्यार से खाना बनाना  और मुझे आपने हाथ से खिलाना  आज खाने को पकवान बहुत हैं  पर वो तेरे हाथ सी मिठास कहाँ हैं? कैसे भूलूंगी उन पलों को मैं  माँ मुझ पे तेरे ये एहसान बहुत हैं  मेरी हर धड़कन को छुआ है तूने  आज मैं तेरी रूह को  छू रही हूँ वही एहसास, वही ख्वाब दे रही हूँ  मेरी बेटी की पलकों में  उसकी गर्म हथेली की पकड़  हर पल कहती है मुझसे  " माँ तू यहाँ है " मुझमे "माँ तू यहाँ हैं"        ...