चली ससुराल
चली ससुराल
चाहतों की डोली मे, ख्वाहिशे चढ़ा कर,
ख्वाबों की दुल्हन को प्यार से सजा कर।
रिश्तो के नए पहलू, से की सगाई,
बाबुल ने घर से जो दी है बिदाई।
बंधन जनम का मैं छोड़ वहाँ आई,
जन्मों का बंधन मैं बाँध के हूँ आई।
माँ ने निभाए जो रस्मो रिवाज,
आँचल के कोने से बंधे है आज।
पापा ने दी हैं दुआएं हज़ार,
भाई ने पोटली भर रखा है प्यार।
एक नयी रहा खुली कदमों के सामने,
आये है हाथ मेरा सजन जी थामने।
दिखती ससुर मैं है पापा की ही झलक,नाम है नया,नहीं रिश्ता ये कुछ अलग।
देकर सहयोग आपना, ननदों ने दूर की।
देवर मिले मुझे है भाई से बढ़ कर,
करेंगे शैतानिया अब दोनों हम मिल कर
कितनी ही खुशियों का काफ़िला बनाकर,
चली ससुराल नयी दुनिया बसाकर।
चाहतों की डोली मे, ख्वाहिशे चढ़ा कर,
ख्वाबों की दुल्हन को प्यार से सजा कर।
This is the best..:-)
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