झील और झरना


प्यार बना है झरना मेरा

झील रही  उसकी चाहत पर
                  
                   ठंडी सर्द हवाओं मैं जब
                     कांप रही मेरी धड़कन जब
                     ख़ामोशी की चादर ओढ़े,
                     खड़ी रही उसकी चाहत पर

लहरों के उन उफानो में
जब मैं  बहती हूँ हर पल
संयम का आँचल थामे तब
चलता वो गीले साहिल पर

                             आज मुझे तुम बतलाओ ना 
ऐसे मुझको तड़पाओ ना
मेरे दिल का हाल सुनो तुम
मन को मेरे समझाओ ना
मुझमें इतने ख्वाब जगा कर 
क्यों हो तुम फिर स्वप्न से रीते 
क्यों तुम मुझको झरना करके 
बने हुए हो झील सरीखे  

उसने मुझको समझाया था
प्यार का मतलब बतलाया था
दिल के हर कोने में फैली
चाहत को भी दिखलाया था

ढूँढ रहा था मन झरना पर
उसी उफनती चाहत को
समझ नहीं पाया था तब ये 
उस झील की बातों को 

आँखों में आँसू को भरके
चला वहां से नयी दिशा में
यादों के कुछ पत्थर लेकर
आज बहा वो नए शिखर से

सूरज की अब नयी किरन में
नयी रश्मियां थी अन्दर
झरने ने स्वीकार किया था
नयी धरा का आलिंगन

लाया था ये नया सवेरा
एक नयी शुरूआत की आशा
आपने ही जल की बूंदों में
देखी थी खुशियों की आभा

कितना समय गया था बीत
नया काल अब आया था 
नए नए पंछी  के झुण्ड थे 
नया नज़ारा छाया  था  

चिड़ियों के कोमल कलरव में
एक नया स्वर आया था
दूर देश का एक परिंदा
पानी पीने आया था

पानी पीकर वो पंछी फिर
धीरे से कुछ  मुस्काया था
और ज़रा होल से फिर
झरने को ये बतलाया था

दूर बड़ी है झील पुरानी
ठंडा मीठा उसका पानी
एक झरने से प्यार है उसको
प्यार ही तो है उसका पानी

और तुम्हे क्या बतलाऊँ मैं 
 अफसाना क्या समझाऊँ मैं
बहना  नहीं है फितरत उसकी  
ठहराव  है आदत उसकी

ठहरा है वो कई काल से
एक  झरने की चाहत में
पर झरना ये समझ पाया
प्यार को उसके  ठुकरा आया 

झील अभी भी वहीँ खड़ी  हैं 
चक्षु  में चाहत को भरके 
आशाएं पर बुझी नहीं हैं 
इंतज़ार झरने का करके 
ये सुन झरने को फिर से 
एहसास ये हो आया 
आज परिंदे की बातों ने 
उसको था ये समझाया 

जिसे खोजता है वो अब 
छोड़ उसे वो हैं आया 
जिस प्रेम से अनभिज्ञ था 
भान उसी का हो आया    

उस  झील के इंतज़ार ने
अब  ये उसको समझाया था
अपने ठहरे पानी का अब
मतलब उसको बतलाया था

चाहत की चाहत के आगे 
प्रेम जिसे वो तज आया था 
 आज उसे फिर से पाने को
मन व्याकुल सा हो आया था

उसने सोचा मुड़ जाऊँगा
और चलूँगा झील किनारे
जाकर फिर मैं मिल जाऊँगा
उसी झील के पानी में

मगर काल के पहिये को 
नहीं समझ वो पाया था 
बीते कल को भी कोई क्या 
कभी दुबारा जी पाया था 

मीलो की दूरी चल कर वो
कितने शिखर उतर आया था
संभव नहीं था वापस जाना
आज जहा वो बह आया था
प्यार बहुत सा पाकर भी तो
उसने लेकिन क्या पाया था
एक अधूरी प्रेम कहानी
इस दुनिया को दे आया था

झरने सी चाहत के आगे 
प्यार झील  सा खो आया था... 


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