Muktak chand

 


क्या तुमने भेजा है चाँद को मेरी निगरानी के लिए 
अक्सर मेरी खिड़की के बहार से मुझे छुप छुप के देखता है।
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ठोकरों का दोष में क्या राह के पत्थर  को दूं

मंजिलें जिसने दिखायीं वो मील का पत्थर ही था 


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वो जो तेरे मेरे बीच लम्बा चला था 
ये उदासी सिला है उसी सिलसिले का 

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जो तोड़नी थी ये रस्मे यो रस्मे क्यों बनायीं 
बनाना था झरोखा तो दीवारे क्यों उठायी 
Banane the jharokhe to dewware kyo uthayi 
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मील का पत्थर भी अपनी मंजीलो को पा रहा  
हर पथिक को उसकी मंजिल का पता बतला रहा 
Ye patjik ko manjilo ka jo pata batla raha.
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वक्त की शाखा पे वो लम्हा जो फूल बनके खेला था

मैने यादो की किताब में अब तक संभल कर रखा है


गहे बाघे पन्ना को पलटते गिर जाता है 

रंग खिखिला नहीं है पर मेरे याद को ख़ूबसूरत से मेनका रख कह है

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लोग कहने लगे मुझसे, मैं कितना बदल गया 
मैं वक़्त के सांचे में जरा सा क्या ढल गया 
वो वक़्त भी था एक जो सुनता था दिल की मैं 
तो कहते थे यही लग में रास्ता भटक गया 

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खोजता तुझको खुदा में दरबदर फिरा 
मंदिर में न मिला मुझे मजीद में न मिला 
काट जाती मेरी ज़िन्दगी तलाश में तेरी 
जो खोजता न तुझको मैं खुद में मेरे खुदा 

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ये वक़्त भी क्या चीज़ है हर ज़ख्म भर देता है निधि 
वार्ना ये शहर बिन तेरे आज अपना सा कैसे लगता 

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कौन कहता है कि वक़्त की गति हमेशा एक होती है  
ये ख़ुशी में बड़ी तेज और दर्द में बड़ी धीरे होती है 

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Tere ishq ka is Dil me Ek Chirag jal raha tha 

Jaise shabe taar me koi mentaab jal raha tha 


Ek umr bitayi tanha khud mai hi kho me maine 

Is Surang ko bhi koi ab ikhtitaam mil Gaya tha 

















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