सीली सी ख्वाहिशे

सीली सी ख्वाहिशे 


सीली सी कुछ ख्वाहिशे यादो के बक्से में पड़ी हैं

सोचती हूं की उन्हे आज कुछ धूप दिखा दूं


पेंसिल से कुछ चित्र उकेरे थे कभी, बेरंग पड़े  हैं

इन्द्रधनुषी जिंदगी से चुराउन पे कुछ रंग चड्ढा दूं


दो पल रुक जाने से सफर कहां ख़त्म हो जाता है

सोचती हूँउम्र के उन लम्हो का कुछ हिसाब चुका दूं


अधूरी ख्वाहिशो का,मैं कब तक बोझ उठाती रहूंगी

आंखों मेंउन्हे पूरा करने काएक ख्वाब जगा दूँ 


वो जो किरदारों के बीच कहीं खो सी गई है निधि

आज सब को भूला के क्यों ना इसे खुद से मिला दूं


सीली सी इन ख्वाहिशो को आज जरा धूप दिखा दूँ...... 

~ Kavita Nidhi 







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