Kahani

 Ye Zindegi ki Gaddi bhag rahi hai

Mere do samanantar ki rail per 
Ek samanantar jo mere andar hai 
Aur doosra jo bahar ye bahar chalta hai 
Lagta hai jaise dono chal rahen Hain
Bina rooke bina thake
Per sach me kahan itne saalo me mere
Andar ki duniya badali hai Aur kahan ye bahar ki duniya bhi badali hai 
Kahate hain na Sab relative hai 
Ye waqt ki Gaddi hai jo bhag hrahi hai 
Varna ye andar Aur bahar ke samanantar
To rail ki patriyo se wahi rooke hai. 
Aaj bhi mere andar ki duniya itni hi pyari Aur sundar hai Aur tum Aaj bhi usme utna hi ho Kitna pehle hua karte the. 
Bahar ki duniya bhi to kuch nahi badali, wahi bhag bhag, wahi mushkile Aur Sab kuch mere controls se bahar.

अक्सर जब भी गाड़ी की खिड़की से एक तरफ झाँक कर देखती हूँ तो मन में बेचैनी हो उठती है की आखिर दूसरी तरफ की खिड़की में क्या होगा? और मन कल्पनाओं में खो जाता है 
और अपनी सोच से एक सुन्दर दृश्य गढ़ता चला जाता है. ये ज़िन्दगी की गाड़ी भी अजीब है जिस तरफ की खिड़की पैर आप हो वो आपकी रियलिटी है और दूसरी तरफ की खिड़की हमेशा ही उत्सुकता का विषय रहती है और आप अपनी सोच में और ख्वाबो में सुन्दर दृश्यों से इसे सजाते चलते है हर मिनट हर पल. परन्तु वो सदा हो यथार्थ से बहुत परे होती हैं  
ऐसे की कुछ ख्यालों में खोयी हुई सी मैं हर तेज की तरहा ऑफिस से कब घर पहुंच गयी पता ही नहीं  चला 

ट्रैन से उतर कर मैंने रिक्शा लिया और घर की तरफ बढ़ गयी.
यथार्थ कितना भी सुन्दर क्यों न हो, मन की उस सजिली दुनिया सा नहीं होता और यही ज़िन्दगी का सबसे बड़ा दुःख भी है. कि हम हमेशा यथार्थ की उससे तुलना  करते रहते हैं 
पर  इसके बिना भी तो मन की दुनिया सूनी हो जाएगी और ये मन की साथ चलने वाली दुनिया ही तो हमारी आँखों को रंगीन सपने देती है.  अभी मैं अपने मन की दुनिया में टहल रही थी की यथार्यः की गाड़ी जोर से धक्के के साथ रूक गयी 
मैंने हड़बड़ा कर खुद को सँभालते है देखा, रिक्शा वाला बोला, मैडम इससे आगे नहीं जा पायेगी रिक्शा आप पैदल चले जाओ. 
मैंने एक सरसरी सी नज़र टूटी बरसात के पानी से कीचड़ में सनी सड़क पर डाली और उससे कहा, भैया ले चलो, थोड़ा ही तो आगे जाना है  
रिक्शा वाले ने कहा, मैडम मुझे return में खली आना पड़ेगा, वह से भाड़ा नहीं मिलता सब यही चौक से लेते है. 
मैंने रिक्शा वाले को देखा तो समझ गयी की उसने आगे न जाने का मन बना लिया है. बड़े अनमने मन से इतर कर उसे पेमेंट किया और साडी थोड़ी हाथो से समेट कर किनारे से आगे बढ़ गयी. आज पता नहीं रेखा काम पैर आयी होगी की नहीं? ऐसा न हो दरवाजा नॉक करके चली  जाए. कल सुबह इतनी इम्पोर्टेन्ट मीटिंग है और प्रेजेंटेशन का काम भी बाकि है अभी अगर खाना बनाना होगा तो बहुत मुश्किल हो जाएगी 

इतने सामान के साथ इस कीचड़ भरी सफाकनपर कॉल करने को फ़ोन पर्स से निकलना भी आसान नहीं था तो तेज कदमो से घर की तरफ चलने लगी  
तभी अचानक फ़ोन बजने लगा  पर मैंने अनसुना कर दिया  

मन में ख्याल आ रहा था कि  प्रणव तो कॉल नहीं कर रहे होंगे 
आज भी शायद लेट तो नहीं आएंगे। अगर ऐसा हुआ तो बड़ी मुश्किल होगी मुझे एक बार फिर ये कीचड़ का समुन्दर पार कर ऑटो ले कर आरव को देकर से लाना होगा
हो सकता है रेखा कॉल कर रही हो, घर के खड़ी होगी शायद।
सोचते सोचते मैं घर के गाटेबोएर पहुंच गयी और गॉर्ड से पूछते हुए की  बाई सोसाइटी  है मई बिना उसके जवाब का इंतजार किये बढ़ गयी. गॉर्ड ने पीछे से आवाज़ लगा कर कहा ‘हाँ मैडम अभी आयी है’
मैंने एक गहरी सांस ली की चलो एक काम तो ठीक हुआ
लिफ्ट का बटन प्रेस करके फ़ोन निकला तो देखा देकर से कॉल था. मन में अचानक से ख्याल आया की आरव ठीक तो है न आज ३० मिनत पहले ही कॉल क्यों किया देकर से.  तभी देखा की देकर से मैसेज आया था की आज आरव को ३० मिनट पहले पिक कीजियेगा। और ये मैसेज तो आफ्टरनून का है लगता है मैंने ऑफिस में मीटिंग्स की व्यस्तता में नोटिस ही नहीं किया।  सोचा कि  प्रणव को कॉल करके पूछती हूँ कब निकल रहें हैं ऑफिस से ?
पर  ये फ़ोन का सिग्नल भी न लिफ्ट में आते ही बंद हो जाता है 
चलो मेरा फिलोर आ गया, लिफ्ट से निकलते ही देखा की रेखा बाई  खड़ी है. मुझे देखते ही बोली, मैडम आप रोज देर करते हो आज देखो न कब से कड़ी हूँ में गेट पर. 
मुझे पता चला गॉर्ड ने बताया तुम अभी २  मिनट पहले एंटर की हो सोसाइटी  में.
क्या मैडम वो ऐसे ही बोलता है उसने कोई टाइम देखा था जब में आयी 
मैंने घर का गेट खोला और सामान रख कर प्रणव को कॉल किया।
मैडम क्या बनाऊं डिनर में?
फ़ोन प्रणव ने पिक किया और उठाते ही तेज आवाज  बोले 
‘ ये क्या है डे केयर से मुझे ३ कॉल आ चुके हैं तुमने आरव को अभी तक पिक क्यों नहीं किया?’
‘ पिक आपको करना था न? ‘
‘ डे केयर से उन्होंने आफ्टरनून में तुम्हे मसाज करके जल्दी पिक करने को बोला था.  और वो मुझे पिछले ३० मिनट से कॉल पर काल कर रहे हैं ,अगर तुम्हे पिक करने में परेशानी थी तो उन्हें बोलना चाहिए था। ‘
“ मैं मीटिंग में थी, मैंने मैसेज नहीं पढ़ा था, आप रेस्पोंद करदेते 
कि एक दिन एडवांस में बता दिया करें और आज अर्ली पिचकूप नहीं कर पाएंगे “
“ मुझे लगा तुम बता दोगी, इसलिए मैंने जवाब नहीं दिया। हमेशा तुम ही रेस्पोंद कर देती हो न।  और वैसे भी मैंने तुम्हे बताया था न की मेरा इस वीक में एक दिन बॉम्बे का प्लान है.कल सुबह जाना है इसलिए लेट होगा।

“ मैडम क्या बना दूँ. जल्दी बोलै इतना टाइम नहीं है मेरे पास”
“ प्रणव होल्ड करो, रेखा दीदी आप पनीर कर दो”
“  तुम प्लीज  आरव को पिक करनलो  मैं अभी मिटींव में जबराहा हूँ बाद में बात करता हूँ “
“ अरे प्रणव कब तक आओगे।।। अरे सुनो।।।”
फ़ोन कट चुका था.... 
एक गहरी सांस ले कर मैंने फ़ोन रक्खा और मुँह उठा कर देखा 
रेखा दीदी को जल्दी से खाना बताया और चप्पल जो अभी उतरी थी वापस पहन ली  ‘ रेखा दीदी मैं अभी १५ मिनट में आती हूँ’
‘ मैडम जल्दी आना मुझे आपने आलरेडी इतना लेट किया है’
‘३० मिनट से ज़्यादा किया तो मैं रूकेगी नहीं जाएगी दरवाजा लगा के'
बिना कुछ जवाब दिए मैं तेजी से लिफ्ट के अंदर घुस गयी  

लिफ्ट से निकल कर मैंने डे केयर कॉल किया  पैर २  से ३ बार भी कॉल करने पर पिक नहीं हुआ. सड़क पैर तजोड़ा आगे बढ़ते हुए चौक से ऑटो ले कर देकर की तरफ बढ़ गयी. 
डे केयर में लेडी बहुत अपसेट थी की मैंने आरव का पिक उप लेट किया। जैसे तैसे  आरव का बैग लेकर उसका हाथ पकड़ कर रोड पैर आ गयी और ऑटो का वेट करने  लगी।  तभी बारिश शुरू हो गयी. और याद आया की जल्दी में छतरी भी घर भूल  आयी हूँ. ये बारिश भी न किसी भी वक़्त शुरू हो जाती है  

१० मिनट से ज्यादा हुआ ऑटो नहीं मिल रहा. सब या तो भरे हुए है या अपने घर लौट रहें है और सवारी नहीं ले रहे  

तभी रेखा दीदी का कॉल आने लगा.  
“ मैडम ४५ मिनट हो गया, मेरा काम हुआ है मैं जाती हूँ.  दरवाजा बहार से हूँ”

“अरे रेखा ताई १० मं रूको मैं आती हूँ” 
“ न रे बाबा ९०३ वाली दीदी लेट आने पे गुस्सा करती है. मैं जाती है ‘“
रेखा बाई ने ये कह कर फ़ोन काट दिया। मेरी टेंशन बढ़ गयी.  इधर ये बारिश नहीं रूक रही और कोई ऑटो नहीं मिल रहा और वह घर ऐसे ही खुला हुआ है। 

और  लैपटॉप और पर्स भी बहार के रूम में ही रक्खा हुआ है 
५ मिनट और  निकल गए,  आरव नींद में था जब उसे डे केयर से लिया था और वो खड़े होने को रेडी नहीं था. मैंने उसे गोदी में ले लिआ.  कंधे पर उसका कपड़ो और सामान का बैग एक हाथ में इसका स्कूल का बैग और आरव गोद में.
सिक्योरिटी केबिन में बैठे गॉर्ड ने मुझे 
परेशां देख कर पुछा “ मैडम ऑटो देख रहे हो क्या?”. आप रूकिये, आपके हाथो में बहुत सामान है  मैं बुला देता हूँ”

किसी तरह से मुझे ऑटो मिला और मैं घर पहुंची।
घर आ कर आरव को बेड पर लिटाया और चेक किया की सब सामान ठीक है की नहीं
आज कल की बाइयों का भी क्या भरोसा। गहरी सांस ली और  सोचा की दो घडी बैठ  जाऊं 
तबी ध्यान गया की कपडे कीचड़  से ख़राब हो गए थे  
सोचा पहले हाथ मुँह धो कर चेंज करती हूँ 
चेंज करके बहार आयी तो देखा घडी ८:३० बजा रही थी
सोचा की एक गिलास पानी पी कर खाना लगाती हूँ 
तभी घर की बेल्ल बजी.
“ जरूर प्रणव होंगे। “
“ अरे श्रेया जल्दी खाना लगाओ। मुझे खाना खाकर कल का बैग लगाना है और कल मॉर्निंग ४ ऍम निलकना  हैं  

“ कुछ बोले बिना ही मैं किचन में चली गयी और खाना गरम करने लगी. “
“ कड़ाई खोल कर देखा तो रेखा दीदी पनीर में आलू दाल गयी हैं “
“ अब तो प्रणव जरूर इर्रिटेट हो जायेंगे”
मैंने रेखा दीदी को कॉल किया “ रेखा दीदी ये पनीर में आलू क्यों डाला है”
“ मैडम पनीर काम लग रहा था. लास्ट टाइम आपने ही तो मुझे बेंगन में एक एक्स्ट्रा आलू बोलै था डालने को जब बेंगन कम था” 
“ मटर डालनी चाहियें थी न”
मन तो किया उसे एक कुकिंग पर लेक्चर सुना दूँ , पर सर दर्द से फटने लगा था तो चुप करके फ़ोन रख दिया  

खाना टेबल पर रख कर मैंने एक गिलास पानी का भरा
तबहि प्रणव बहार आये और पानी माँगा। मैंने भरा हुआ वो गिलास उनकी तरफ बढ़ा दिया और एक गिलास और भर लिया। और पानी पिने लगी.
प्रणव ने प्लेट लगनी शुरू की और बोले आ जाओ श्रेया खाना खा लेते है   
पनीर देखते ही बोले ये क्या बनाया है रेखा ने
“ कही देखा है पनीर में आलू, एक भी काम ठीक से नहीं कर सकती ये “
“ श्रेया तुमने उसे बताया नहीं था क्या?”

“ मन तो बहुत कुछ कहने का किया पर बिना कुछ कहे खाना खाने बैठ गयी”

खाना फिनिश करके उठी तो याद आया की कल की मीटिंग के लिए प्रेजेंटेशन बनानी थी. दिन किस तरह चला गया पता ही नहीं चला देखो कैसे १० बज गए. 
मैंने जल्दी से लैपटॉप स्टार्ट किया और काम करने बैठ गयी.. 
तभी प्रणव ने आवाज़ लगायी उन्हें पैकिंग में हेल्प चाहिए थी. मैं अनमने मन से जा कर उन्हें बताने लगी.  किसी तरह सब फिनिश करके फिर आ कर बैठी। १२ बज गए थे और मेरी पीपीटी रेडी थी. मैं जा कर बीएड ओर लेट गयी.  नींद नहीं आ रही थी. सोचते सोचते फिर विचारो की श्रंखला जुड़नी शुरू हो गयी थी. 

मन की दुनिया में मेरा राजकुमार मेरे पास आ कर पूछता है की श्रेया बहुत थक गयी हो न.  कैसा रहा तुम्हारा दिन आज.  बहुत परेशां हुई न आरव को पिक करने में . मुझे एक कॉल करती तो मैं चला आता….

अक्सर प्रणव भी ऐसे ही कहा करते थे पहले। मेरे मन की दुनिया में तो आज भी प्रणव वही है। पर जिंदगी की गद्दी बहुत आगे निकल गईहै और ये जो यथार्थ और सपनो की दुनिया की 2 पटरिया कहीं दूर मिलती है दिखती थी पास आकार समानार हो जाती है... और कभीनहीं मिलती...

और आप मन के अंदर और बहार की इस दुनिया को हमेशा साथ लेकर गद्दी की तरह जीवन के इस सफर में यू ही चलते चले जाते हैं।


aksar Pranav bhi aise hi kaha karte the arse pehle. Meri man ki duniya me to Aaj bhi Pranav wahi hain. Per Zindegi ki gaddi Bahut aage nikal gayi hai Aur ye jo yatharth Aur sapno ki duniya ki 2 patriya kahi door milti hui dikhti thi paas aakar samanatar Ho jaati hain…Aur Kabhi nahi milti……
Aur aap man ke andar Aur bahar ki is duniya ko hamesha saath lekar  gaddi ki tarha Jeevan ke is safar me yu hi chalte chale jaate Ho.


R




















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