सिलवटें
सिलवटें
जाने कितनी ही तरह की देखीं हैं मैंने ये सिलवटें
(इ)स्त्री हूँ, महसूस भी की हैं मैंने ये सिलवटें
कभी परेशानी सी टिकी पेशानी पे ये सिलवटें
कभी मुकद्दर मेरा लिखती माथे पे ये सिलवटें
कभी तजुर्बा बन हाथो पे मेरे ठहरीं ये सिलवटें
कभी बीच भोहों के दर्द सी बैठी ये सिलवटें
कभी होठों के कोने से खिलखिलाई ये सिलवटें
कभी उम्र बन चहरे पे हैं छायी ये सिलवटें
कभी कशिश सी लगी पतली कमर पे ये सिलवटें
कभी मातृत्व सी थी माँ के पेट पे ये सिलवटें
गहरा राज छुपाती कभी मेरे मन की ये सिलवटें
कभी रिश्तों में दूरियां लाती दिल की ये सिलवटें
कभी सेज पे प्यार की हैं निशानी ये सिलवटें
कभी करवटों में गुजरी रात की कहानी ये सिलवटें
जाने कितनी ही तरह की देखीं हैं मैंने ये सिलवटें
(इ)स्त्री हूँ, मन से महसूस की हैं मैंने ये सिलवटें
~kavita Nidhi
Comments
Post a Comment