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Showing posts from 2021

ठहरना ही भूला बैठे

ज़माने से जमाने में, ज़माने हम गवां बैठे सभी कुछ जान जाने में, खुद ही को हम भूला बैठे ना अब वो रात आती है,ना वो सुबह ही होती है नया सूरज उगाने में, क्यो ये नींद उड़ा बैठे ये अलीशान घर भी तो, कहां मेरी जरूरत था  ज़माने को दिखाने में, ये क्या क्या हम जमा बैठे वो गाँव की थी पगडंडी, जहां थे झूम के चलते ये कैसी दौड़ में भागे, ये किस रास्ते निकल बैठे जीत हर हाल में हासिल, इसी एक शर्त पे जीते मगर इस सिलसिले में,हम ठहरना ही भूला बैठे बहुत कुछ हम जमा करके, बहुत कुछ हम लुटा बैठे ज़माने से जमाने में, ज़माने हम गवां बैठे~kavitaNidhi 

Pyar ke bol ka

  प्यार के बोल का प्यार ही मोल है प्यार को तोल न प्यार अनमोल है प्यार निशब्द है प्यार ही गूंज है प्यार की है जो भाषा वही मौन है प्यार के इन्ही धागों से जख्म है सिला  जिंदगी खिल गई प्यार जिसको मिला प्यार ही हैं    दवा प्यार ही तो दुआ शून्य ही है ये जीवन इसके बिना प्यार जो था सिया का वही राम है  राम थे जो सिया के वही प्यार है  कृष्ण राधा निभाए वही प्यार हैं  प्यार निस्वार्थ है  प्यार ही तीर्थ है  न कोई शर्त हो, प्यार की शर्त है  प्यार से जीत लो प्यार में हार के  कर लो हासिल उन्हे अपना सब वार के  प्यार में है खुदा प्यार सब से जुदा हो गया वो अमर इसमें जो मर मिटा 

बचपन के दिन

बड़े याद आते हैं बचपन के दिन वो रातें सुकूं की और तसल्ली के दिन वो गरमी की छुट्टी दुपहरी    के दिन वो कोयल की कूह कूह, गिलहरी के दिन वो अमिया के पेड़ो पे बोरो के दिन वो सखियों संग बगिया में झूलो के दिन वो दानो को चुगती गौरैया के दिन और शामो को चलती पूर्वैया के दिन वो जामुन के दिन वो आमो के दिन वो कुल्फी, शिकंजी, तरबूजों    दिन वो सुनी दुपेरिया में मस्ती के दिन दोस्तो के संग मटरगश्ती    के दिन वो चाक कलम और तख्ती के दिन वो थोड़ी सी छूट थोड़ी सख्ती के दिन  बड़े याद आते हैं बचपन के दिन वो रातें सुकूं की और तसल्ली के दिन वो सर्दी की सुबह कड़कते से दिन वो कोहरे की चादर में लिपटे से दिन वो सुबह अँधेरी    सी सड़को के दिन वो पैदल ही साइकिल ले चलते से दिन वो लम्बे ठिठुरते    गली के किनारे सफेदी लिए उकेलिप्टस के दिन वो कोसी सी धूप निवाये से दिन वो रंगीन ऊने बुनाई के दिन वो शॉल वो स्वेटर वो मफलर के दिन वो गरमा गरम चाय कॉफ़ी के दिन वो मुँह से निकलकर धुआं होते दिन वो जागे से दिखते जो सोये से दिन बड़े याद आते हैं बचपन के दिन वो रातें सुकूं की और तसल्...

कुछ खुद के लिए रखना

‘  नहीं लाते मुस्कराहट कभी मुरझाये हुए फूल’ इस बात को हमेशा याद रखना।  ( बात का हमेशा ध्यान रखना) सबकी खुशियों का भी सोचना, पर तुम खुद का भी थोड़ा ख्याल रखना।   दिन रात खटकती हो सब को मनुहारती मनाती हुई तुम, थोड़ा रुक जाना जब थक जाओ, दो चार पल तुम  खुद के लिए भी पास रखना।    कभी नींद न खुल पाए जल्दी तो खुद को मत कोसना, ‘ ३ बार इस साल टिफिन miss हुआ बच्चे का’ छोड़ देना इसका हिसाब रखना।    खाना आज बहुत अच्छा नहीं बना तो अफ़सोस मत करना, कल बहुत अच्छा भी तो बना था, बस ये जरा सा तुम याद रखना।   कभी भूल जाओ जो चीज़े रख कर कहीं और याद न कर पाओ तुम,  ‘होता है ऐसा भी’ कहना मुस्कुराकर, मन को मत अपने तुम उदास रखना।   भले कोई कह दे तिरस्कार करके कि ‘ ये तुमसे नहीं हो पायेगा’, तू कर सकती है सब कुछ ये मन में अपने अडिग विश्वास रखना। जब हर किसी से प्यार जताती हो तो खुद से क्यों नहीं ? कोई और दे न दे, अपने हिस्से का थोड़ा प्यार अपने पास रखना।    ~Kavita Nidhi

जिंदा रखना है

देखना   दिल   मासूम   रहे   चाहे   चेहरा   संजीदा   रखना अपने   अंदर   के   बच्चों   को   तुम   हमेशा     जिंदा   रखना   है चीनी   के   मेरीज   हो   तो   मिठाईयां   कम   चखना चॉकलेट   और   टॉफी   को   भी   जरा   दूर   रखना मगर   अपने   अंदर   के   बच्चों   को   तुम   हमेशा   जिंदा   रखना   है खेल   ना   पाओ   ना   सही   शौक   भले   चुनिंदा   रखना उम्र   नींद   ले   जाए   जाने   दो ,  पर   ख्वाबो   को   उठता   परिंदा   रखना कुछ   भी   हो   अपने   अंदर   के   बच्चों   को   तुम     हमेशा   जिंदा   रखना   है नज़रो   से   साफ   दिखे   या   न   दिखे ,  पर   दिल   तुम   साफ   सुथरा...

चाँद के रूप

चाँद    के   रूप उमर   के   साथ  देखो  न   कैसे   रूप   बदलता   है  ये  चाँद  कभी   कहते   थे   जिसे   मामा हम, अब  जवान दिल को  महबूब   सा   लगता   है  वो   चाँद  माँ   की   लोरी   ही   नहीं ,  गज़ल, गीत  और कभी  शायरी   का   हिस्सा बनता   है  ये  चाँद  और फिर एक   उमर   आती   है  जब  अपना  बच्चा   भी तो हमे    लगता   है   चाँद  उमर   के   साथ   देखो न कितने रूप बदलता है ये चाँद  कभी दिल को छू  ले ये  पूनम का चाँद  कभी इंतज़ार कराये क्यों ये ईद का चाँद  बिन बालो के भी दिख जाता कभी ये चाँद  कभी कटोरी है चाँद, कभी रोटी है चाँद  हज़ारो तारो में अकेला अनोखा है चाँद  कल्पनाओं   में   हमारी  हरदम रहता है ये चाँद  रूप बदल बदल कर दिल को ...

Muktak- बचपन वाले दोस्त

  समझदारी से रिश्ते बस निभते हैं, दिल जुड़ते नहीं  तभी तो बचपन वाले दोस्त फिर कभी मिलते नहीं  समझदारी से तो रिश्ते बस निभाए जाते हैं, दिल से जुड़ते नहीं  तभी तो बचपन की नासमझी वाले दोस्त फिर कभी मिलते नहीं  ~kavitaNidhi  लगता था रिश्ते बनाने सिख लेंगे जब हम बड़े और समझदार  होंगे  नहीं पता था बचपन की नासमझी में बने दोस्त ही बस दमदार होंगे 

काफी हो

मुझमे अब तक थोड़े से तो बाकी हो  पर ज़िंदा रहने को उतना भी काफी हो  तेरे शहर में बिन आंखे नम किये घूमी मैं  मेरी मुस्कराहट में हो तुम, बस काफी हो  समझौता ज़िन्दगी का ज़िन्दगी से हो गया है अब  ज़िन्दगी में न सही चाँद लम्हात ( meri yaadon )में हो, बस  काफी हो  जब भी हारती हूँ मैं तुम याद आ जाते हो तब  मुझमे उम्मीद बन के  ज़िंदा हो तो काफी हो  मोती बनने को समुन्दर की भला क्या जरूरत  मुझमे स्वाति की एक बूँद से हो तुम, काफी हो  तकदीर की ये लकीर बन ही जायेगी अब  मैं एक बिंदु और तुम दुसरे, बस काफी हो   ~ Kavita Nidhi 

टूटा पत्ता ज़िन्दगी

टूटा पत्ता ज़िन्दगी शाख से गिरना है तय  ख़ाक में मिलना है तय  ज़िन्दगी का ये सफर  इसका गुजरना भी है तय सुन रे पत्ते , सुन रे पत्ते  थोड़ा सा तू तैर ले  खुद के इस वजूद की तू  एक झलक तो लूट ले   इस तरह तू खिल के हंस  फूल संग में खिल उठे  झूम के यूँ चल जरा तू  हवा मचलने सी लगे  देख ये अंदाज़ तेरा   मय बहकने सी लगे  और नभ भी कह उठे  जीना इसी का नाम है  जीना इसी का नाम है  क्षण भर का है जो ये सफर  हर कोई दोहराएगा  कितने  टूटे और गिरे फिर  किसे याद रह जायेगा  एक जो  एहसास तेरे  संग में ही बस जायेगा  कि कौन कितना झूमता सा  ख़ाक में मिल जायेगा  सुन रे पत्ते , सुन रे पत्ते  थोड़ा सा तू तैर ले  खुद के इस वजूद की तू  एक झलक तो लूट ले। ….. ~Kavita Nidhi 

मेरे पापा

खुद गर्मी सह लेते पापा  धूप में छाया बनते पापा  मैं जब भी थक कर हार गई  मेरी हिम्मत बनते पापा  मैं जब जब तन्हा घबराई  मेरे साथ खड़े थे पापा  मुश्किल के बरसे बदल जब  मेरी छतरी मेरे पापा  रास्ता जब है खो सा जाता ‘अब क्या होगा बोलो पापा’ कंधे पर सर रखती थी तो  ‘मैं हूँ ना’ कह देते पापा  पापा के जैसे ही हंसना  पापा सी ही बाते करना  हरदम ये इच्छा थी मेरी  तुम सा ही बन जाऊं पापा  दिल ही दिल मुस्काती थी मैं  जब सब xerox बतलाते थे  कितना अच्छा हो जायेगा  गर दिल तुमसा पा जाऊं पापा   आज जरा कमजोर दिखें हैं  कंधे भी कुछ और झुकें हैं  बचपन में जो लगते थे वो  super hero मेरे पापा  पर अब भी  जब कह देते हैं  सर पे हाथ मेरे रख कर वो  लगता है अब नहीं अकेली  मेरे साथ हैं मेरे पापा  खुद गर्मी सह लेते पापा  धुप में छाया बनते पापा.........