अभी और भी हैं

अभी और भी हैं ...


ठोकरो से हो  विचलित 

रास्ते कई और भी हैं 

अफ़सोस (सोग) ना कर हार का तू 

मंज़िलें अभी और भी हैं 


आस का एक दीप बुझता 

सौ दिए नए और भी हैं 

 मिला जो चाहा था पर 

चाहतें अभी और भी हैं 


एक यही बस गम नहीं है 

दर्द कितने और भी हैं 

आज उनका साथ छूटा 

पर सहारे और भी है  


प्यार कितना है किया पर 

प्यार मुझमे और भी है 

मर मिटे हम उनपे लेकिन 

ज़िन्दगी अभी और भी है 


तेरी रूह का मेरी रूह से 

कोई रिश्ता और ही है 

इस जमी पे  मिले पर 

एक जहाँ अभी और भी है 


एक किनारा छोड़ कर जो 

है समुन्दर में भटकती 

लहरों से तू लड़  किश्ती 

सौ किनारे और भी हैं  


आसमां  सर पे था टूटा 

घोसला उसका जो छूटा 

 परिंदे उड़ जरा तू 

आसमां बड़ा और भी हैं 


इस गली का छोर भी है 

इस डगर पे मोड़ भी है 

अफ़सोस  कर हार का तू 

मंजिलें अभी और भी हैं 

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