अधूरा जो फ़साना


कहाँ कोई मुकम्मल प्रेम के कभी गीत गाता  है  

अधूरा जो फ़साना रह गया, उसे गुनगुनाता है  


भले लगती हो अच्छी आज भी हमे हैप्पी ये एंडिंग पर 

मगर जो दर्द है हमको वही बस याद आता है  


कहाँ कोई मुकम्मल प्रेम के कभी गीत गता है..... 


जरा सोचो कि लैला मिल गयी होती जो मजनू को 

वो होता आम सा किस्सा, जमाना भूल जाता है 


कहाँ कोई मुकम्मल प्रेम के कभी गीत गता है..... 


पति के रूप में उन्हें रुक्मणी ने पाके भी क्या पाया।

अभी भी कृष्ण के संग नाम तो राधा का आता है।


कहाँ कोई मुकम्मल प्रेम के कभी गीत गता है..... 


अधूरे प्रेम की तड़पन, मुकम्मल प्रेम से ज्यादा 

तभी तो  दर्द ये दुनिया के दिल  को चीर जाता है  


मुकम्मल प्रेम के किस्से तो छुप कर  घर  में होते हैं 

अधूरे प्रेम का चर्चा किया  नुक्कड़ पे  जाता है   




कहाँ कोई मुकम्मल प्रेम के कभी गीत गाता  है  

अधूरा जो फ़साना रह गया, उसे गुनगुनाता है ….


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