कहानी- समानान्तर
कहानी- समानान्तर
अक्सर जब भी गाड़ी की खिड़की से एक तरफ झाँक कर देखती हूँ तो मन बेचैन हो उठता है कि आखिर दूसरी तरफ की खिड़की में क्या होगा? और मन कल्पनाओं में खो जाता है
और अपनी सोच से एक सुन्दर दृश्य गढ़ता चला जाता है. ये ज़िन्दगी की गाड़ी भी अजीब है जिस तरफ की खिड़की पर आप हो वो आपकी रियलिटी है और दूसरी तरफ की खिड़की हमेशा ही उत्सुकता का विषय रहती है और आप अपनी सोच में और ख्वाबो में सुन्दर दृश्यों से इसे सजाते चलते है हर मिनट हर पल, परन्तु वो सदा ही यथार्थ से बहुत परे होती हैं
ऐसे की कुछ ख्यालों में खोयी हुई सी मैं हर roj की तरहा ऑफिस से कब घर पहुंच गयी पता ही नहीं चला
ट्रैन से उतर कर मैंने रिक्शा लिया और घर की तरफ बढ़ गयीl
यथार्थ कितना भी सुन्दर क्यों न हो, मन की उस सजिली दुनिया सा नहीं होता l ज़िन्दगी का सबसे बड़ा दुःख भी यही है, कि हम हमेशा यथार्थ की उससे तुलना करते रहते हैं l
पर इसके बिना भी तो मन की दुनिया सूनी हो जाएगी और ये साथ चलने वाली दुनिया ही तो हमारी आँखों को रंगीन सपने देती है. अभी मैं अपने मन की दुनिया में टहल रही थी की यथार्यः की गाड़ी जोर से धक्के के साथ रूक गयी
मैंने हड़बड़ा कर खुद को सँभालते hue देखा, रिक्शा वाला बोला, मैडम इससे आगे नहीं जा पायेगी रिक्शा आप पैदल चले जाओ.
मैंने एक सरसरी सी नज़र टूटी बरसात के पानी से कीचड़ में सनी सड़क पर डाली और उससे कहा ‘भैया ले चलो थोड़ा ही तो आगे जाना है’l
रिक्शा वाले ने कहा, ‘मैडम मुझे return में खली आना पड़ेगा’, वहां से भाड़ा नहीं मिलता सब यहीं चौक से लेते हैंl
मैंने रिक्शा वाले को देखा तो समझ गयी की उसने आगे न जाने का मन बना लिया है, बड़े अनमने मन से उतर कर उसे पेमेंट किया और साडी थोड़ी हाथो से समेट कर किनारे-किनारे आगे बढ़ गयीl आज पता नहीं रेखा काम पर आयी होगी की नहीं? ऐसा न हो दरवाजा नॉक करके चली जाएl कल सुबह इतनी इम्पोर्टेन्ट मीटिंग है और प्रेजेंटेशन का काम भी बाकि है अभी अगर खाना बनाना होगा तो बहुत मुश्किल हो जाएगी l
इतने सामान के साथ इस कीचड़ भरी सड़क पर कॉल करने को फ़ोन पर्स से निकलना भी आसान नहीं था, तो तेज कदमो से घर की तरफ चलने लगी
तभी अचानक फ़ोन बजने लगा पर मैंने अनसुना कर दिया
मन में ख्याल आ रहा था कि प्रणव तो कॉल नहीं कर रहे होंगे
आज भी शायद लेट तो नहीं आएंगे। अगर ऐसा हुआ तो बड़ी मुश्किल होगी मुझे एक बार फिर ये कीचड़ का समुन्दर पार कर ऑटो ले कर आरव को डे केयर से लाना होगा
हो सकता है रेखा कॉल कर रही हो, gate पर खड़ी होगी शायद।
सोचते सोचते मैं society के gate पर पहुंच गयी और गॉर्ड से पूछते हुए कि ‘ रेखा बाई आई है या नहीं’ बिना उसके जवाब का इंतजार किये आगे बढ़ गयीl गॉर्ड ने पीछे से आवाज़ लगा कर कहा ‘हाँ मैडम अभी आयी है’
मैंने एक गहरी सांस ली की चलो एक काम तो ठीक हुआ
लिफ्ट का बटन प्रेस करके फ़ोन निकला तो देखा डे केयर से कॉल थाl मन में अचानक से ख्याल आया की आरव ठीक तो है न आज ३० मिनत पहले ही कॉल क्यों किया l तभी देखा की डे केयर से मैसेज आया था की आज आरव को ३० मिनट पहले पिक कीजियेगा। और ये मैसेज तो आफ्टरनून का है, लगता है मैंने ऑफिस में मीटिंग्स की व्यस्तता में नोटिस ही नहीं किया। सोचा कि प्रणव को कॉल करके पूछती हूँ कब निकल रहें हैं ऑफिस से ?
पर ये फ़ोन का सिग्नल भी न लिफ्ट में आते ही बंद हो जाता है
चलो मेरा फिलोर आ गया, लिफ्ट से निकलते ही देखा की रेखा बाई खड़ी है. मुझे देखते ही बोली, मैडम आप रोज देर करते हो आज देखो न कब से कड़ी हूँ में गेट पर.
‘मुझे पता चला गॉर्ड ने बताया तुम अभी २ मिनट पहले एंटर की हो सोसाइटी में’ मैंने कहा
‘क्या मैडम वो ऐसे ही बोलता है उसने कोई टाइम देखा था जब में आयी ‘ रेखा ने लपरवाही से कहा
मैंने घर का गेट खोला और सामान रख कर प्रणव को कॉल किया।
‘मैडम क्या बनाऊं डिनर में?’ रेखा ने पूछा
फ़ोन प्रणव ने पिक किया और उठाते ही तेज आवाज बोले
‘ ये क्या है डे केयर से मुझे ३ कॉल आ चुके हैं तुमने आरव को अभी तक पिक क्यों नहीं किया?’
‘ पिक आपको करना था न? ‘
‘ डे केयर से उन्होंने आफ्टरनून में तुम्हे मैसेज करके जल्दी पिक करने को बोला था. और वो मुझे पिछले ३० मिनट से कॉल पर काल कर रहे हैं ,अगर तुम्हे पिक करने में परेशानी थी तो उन्हें बोलना चाहिए था। ‘
“ मैं मीटिंग में थी, मैंने मैसेज नहीं पढ़ा था, आप रेस्पोंद करदेते
कि एक दिन एडवांस में बता दिया करें और आज अर्ली पिक-उप नहीं कर पाएंगे “
“ मुझे लगा तुम बता दोगी, इसलिए मैंने जवाब नहीं दिया। हमेशा तुम ही रेस्पोंद कर देती हो न। और वैसे भी मैंने तुम्हे बताया था न की मेरा इस वीक में एक दिन बॉम्बे का प्लान है, कल सुबह जाना है इसलिए लेट होगा।’
“ मैडम क्या बना दूँ, जल्दी बोलो, इतना टाइम नहीं है मेरे पास”
“ प्रणव होल्ड करो, रेखा दीदी आप पनीर कर दो”
“ तुम प्लीज आरव को पिक कर लो मैं अभी मिटींव में जा रहा हूँ बाद में बात करता हूँ “
“ अरे प्रणव कब तक आओगे।।। अरे सुनो।।।”
फ़ोन कट चुका था....
एक गहरी सांस ले कर मैंने फ़ोन रक्खा और रेखा दीदी को जल्दी से खाना बता कर, चप्पल जो अभी उतरी थी वापस पहन ली ‘ रेखा दीदी मैं अभी १५ मिनट में आती हूँ’ कह कर दरवाजे की तरफ बढ़ गईl
‘ मैडम जल्दी आना मुझे आपने आलरेडी इतना लेट किया हैl
३० मिनट से ज़्यादा किया तो मैं रूकेगी नहीं, जाएगी दरवाजा लगा के' रेखा ने पीछे से बोला
बिना कुछ जवाब दिए मैं तेजी से लिफ्ट के अंदर घुस गयीll
लिफ्ट से निकल कर मैंने डे केयर कॉल किया पर २ से ३ बार भी कॉल करने पर पिक नहीं हुआ. सड़क पर तेजी से आगे बढ़ते हुए चौक से ऑटो ले कर डे केयर की तरफ बढ़ गयीl
डे केयर लेडी बहुत अपसेट थी कि मैंने आरव का पिक उप लेट किया। जैसे तैसे आरव का बैग लेकर उसका हाथ पकड़ कर रोड पर आ गयी और ऑटो का वेट करने लगी। तभी बारिश शुरू हो गयी, और याद आया की जल्दी में छतरी भी घर भूल आयी हूँ. इस शहर की ये बारिश भी न किसी भी वक़्त शुरू हो जाती है
१० मिनट से ज्यादा हुआ ऑटो नहीं मिल रहा, सब या तो भरे हुए है या अपने घर लौट रहें है और सवारी नहीं ले रहे
तभी रेखा दीदी का कॉल आने लगा.
“ मैडम ४५ मिनट हो गया, मेरा काम हुआ है मैं जाती हूँ. दरवाजा बहार से लगाती हूँ”
“अरे रेखा ताई १० minute रूको मैं आती हूँ”
“ न रे बाबा ९०३ वाली दीदी लेट आने पे गुस्सा करती है, मैं जाती है ‘“
रेखा बाई ने ये कह कर फ़ोन काट दिया। मेरी टेंशन बढ़ गयीl इधर ये बारिश नहीं रूक रही और कोई ऑटो नहीं मिल रहा और वहां घर ऐसे ही खुला हुआ है। और लैपटॉप और पर्स भी बहार के रूम में ही रक्खा हुआ है l
५ मिनट और निकल गए, आरव नींद में था जब उसे डे केयर से लिया था और वो खड़े होने को रेडी नहीं था. मैंने उसे गोदी में ले लिआl कंधे पर उसका कपड़ो और सामान का बैग एक हाथ में इसका स्कूल का बैग और आरव गोद मेंl
सिक्योरिटी केबिन में बैठे गॉर्ड ने मुझे
परेशां देख कर पुछा “ मैडम ऑटो देख रहे हो क्या?” आप रूकिये, आपके हाथो में बहुत सामान है मैं बुला देता हूँ”l
किसी तरह से मुझे ऑटो मिला और मैं घर पहुंची।घर आ कर आरव को बेड पर लिटाया और चेक किया की सब सामान ठीक है की नहींl आज कल की बाइयों का भी क्या भरोसा। गहरी सांस ली और सोचा की दो घडी बैठ जाऊं,
तभी ध्यान गया कि कपडे कीचड़ से ख़राब हो गए थे
सोचा पहले हाथ मुँह धो कर चेंज करती हूँ l
चेंज करके बहार आयी तो देखा घडी ८:३० बजा रही थी
सोचा की एक गिलास पानी पी कर खाना लगाती हूँ
तभी घर की बेल्ल बजी, सोचा जरूर प्रणव होंगे।
“ अरे श्रेया जल्दी खाना लगाओ। मुझे खाना खाकर कल का बैग लगाना है और कल मॉर्निंग ४ ऍम निलकना हैं ‘ प्रणव ने घर में घुसते ही बोलाl
कुछ बोले बिना ही मैं किचन में चली गयी और खाना गरम करने लगीl कड़ाई खोल कर देखा तो रेखा दीदी पनीर में आलू डाल गयी हैं “
“ अब तो प्रणव जरूर इर्रिटेट हो जायेंगे”
मैंने रेखा दीदी को कॉल किया “ रेखा दीदी ये पनीर में आलू क्यों डाला है”
“ मैडम पनीर काम लग रहा था. लास्ट टाइम आपने ही तो मुझे बेंगन में एक एक्स्ट्रा आलू बोलै था डालने को जब बेंगन कम था” रेखा बोली
“ मटर डालनी चाहियें थी न” मैंने बोलाl
मन तो किया उसे एक कुकिंग पर लेक्चर सुना दूँ , पर सर दर्द से फटने लगा था तो चुप करके फ़ोन रख दिया
खाना टेबल पर रख कर मैंने एक गिलास पानी का भरा
तबहि प्रणव बहार आये और पानी माँगा। मैंने भरा हुआ वो गिलास उनकी तरफ बढ़ा दिया और एक गिलास और भर लिया। और पानी पिने लगी.
प्रणव ने प्लेट लगनी शुरू की और बोले आ जाओ श्रेया खाना खा लेते है
पनीर देखते ही बोले ये क्या बनाया है रेखा ने
“ कही देखा है पनीर में आलू, एक भी काम ठीक से नहीं कर सकती ये “
“ श्रेया तुमने उसे बताया नहीं था क्या?”
“ मन तो बहुत कुछ कहने का किया पर बिना कुछ कहे खाना खाने बैठ गयी”
खाना फिनिश करके उठी तो याद आया की कल की मीटिंग के लिए प्रेजेंटेशन बनानी थी. दिन किस तरह चला गया पता ही नहीं चला देखो कैसे १० बज गएl
मैंने जल्दी से लैपटॉप स्टार्ट किया और काम करने बैठ गयी..
तभी प्रणव ने आवाज़ लगायी उन्हें पैकिंग में हेल्प चाहिए थी. मैं अनमने मन से जा कर उन्हें बताने लगीl किसी तरह सब फिनिश करके फिर आ कर बैठी।
१२ बज गए थे और मेरी पीपीटी रेडी थीl मैं जा कर बिस्तर पर लेट गई , पर नींद नहीं आ रही थीl और सोचते सोचते फिर विचारो की श्रंखला जुड़नी शुरू हो गयी थीl
मन की दुनिया में मेरा राजकुमार मेरे पास आ कर पूछता है की श्रेया बहुत थक गयी हो न, कैसा रहा तुम्हारा दिन आजl बहुत परेशां हुई न आरव को पिक करने में, मुझे एक कॉल करती तो मैं चला आता….
अक्सर प्रणव भी ऐसे ही कहा करते थे पहले,मेरे मन की दुनिया में तो आज भी प्रणव वही हैl पर जिंदगी की गाड़ी बहुत आगे निकल गई हैl और ये जो यथार्थ और सपनो की दुनिया की 2 पटरिया जो कहीं दूर मिलती हुई दिखती थी पास आकार समानार हो जाती है... और कभी नहीं मिलती...
और आप मन के अंदर और बहार की इस दुनिया को हमेशा साथ लेकर गाड़ी की तरह जीवन के इस सफर में यू ही चलते चले जाते हैं।
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