सन्नाटा

सन्नाटा

मैं सन्नाटा  हूँ
मैं मौन नहीं हूँ
मेरी एक आवाज़ है
कभी सुनी है तुमने
हाँ, वही जिसे तुम
सायं सायं झायें  झायें
घाएँ घाएँ कहते हो
मुझमे शब्द नहीं हैं
पर मैं बहुत कुछ कहता हूँ
बातें जो समझा नहीं पाती
मैं  वो भी समझा देता हूँ
कुछ न कह कर भी
मैं सब कह देता हूँ 


आसान नहीं है
मेरा सामना करना
बड़े बड़े बातों में धुरंदर
मेरे सामने टिक नहीं पाते
ध्वनि, कोलाहल मैं करता नहीं
आवाज़ों की चीत्कार मैं भरता नहीं
कहने और सुनने पर निर्भर नहीं
शब्दों के जाल में बुनता नहीं
समझो मेरा वजूद
मेरे कमरे में आते ही
एक बेचैनी सी आ जाती है
लोग नज़रे मिला नहीं पाते 


बातें दुनिया के लिए हैं
मैं तेरा अपना हूँ
सुन, तेरे अंतर्मन से
जुड़े हैं मेरे ये तार
दर्पण हूँ तेरे अस्तित्व का
इसलिए तो अचानक कमरे में
मेरे आने से तू घबराता है
खुद को इस तरह भीड़ में
अनवरत सा पाता हैं
और हाँ,
जब तू मेरे वजूद को अपना लेगा
और मुझे अपना मित्र बना लेगा
मुझसे आकर तन्हाई में मिलेगा
तब मेरे दोस्त,
मुझमे ही तू खुद को पा लेगा
मैं सन्नाटा हूँ तेरा अपना 
खुद में ही तू मुझको पा लेगा

~ kavita Nidhi 

 


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