बँटवारा



माँ बाबा अब चले गएँ है,
घर तो अब बंट जायेगा
घर का अपना आंगन था जो
आंगन कहाँ अब रह जायेगा 

सुनो भइया, तुम सब रख लेना
बस मुझको वो तकिया दे देना
जिस पर माँ अक्सर सोती थी
हम बच्चो के दर्द पे अक्सर
रातों को, सर रख रोती थी

जब भी माँ की याद आएगी
रात में जब ना नींद आएगी
सर रख उसपे सो जाऊंगी
माँ की गोद मै पा  जाऊंगी 

माँ बाबा अब चले गएँ हैं
घर तो अब बंट जायेगा
घर का अपना आंगन था जो
आंगन कहाँ अब रह जायेगा 

ये घर तुम दोनों का है अब
करलो कैसे भी बँटवारा 
बस उस अमिया के दरखत को
भैया देखो मत कटवाना 

अगले बरस जब घर आऊँगी
तुम संग मैं रह कर जाऊंगी
माँ बाबा अब कहाँ मिलेंगे
यादें उनकी जी जाऊंगी

कुछ पल को इस खाट पे बैठे
इस अमिया के दरखत नीचे
बाबा का एहसास मिलेगा
उनको कुछ महसूर करूंगी 

बाकी  सब चाहे तुम भैया
आधा आधा रख लेना
मुझको बस ये पाटा देकर
बात मेरी तुम रख लेना

चौके में अक्सर अम्मा जब
इस पर  रोटी बेला करती थी
रोटी कैसे बनती है ये
अक्सर मैं देखा करती थी

कहाँ बना पाती  हूँ अब तक
गोल गोल माँ जैसी रोटी
शायद इस पर भैया मैं भी 
 उनसी  रोटी कर पाऊंगी

करलेना चूल्हा अपना तुम
अलग अलग चाहे, पर सुनलो 
घर के हर कोने को  चाहो 
ये मेरा, वो तेरा कर लो 

मैं जब भी मायके आऊं तो 
मान  मेरा तुम रख लेना 
साथ बैठ  के तुम मेरे बस 
खाना संग संग  खा लेना'


माँ बाबा अब चले गएँ हैं
घर तो अब बंट जायेगा
घर का अपना आंगन था जो
आंगन कहाँ अब रह जायेगा

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