अम्मा बड़ा याद आयीं

आज फिर अम्मा बड़ा याद आयीं
कल रात वो मेरे सपने में आयीं
मिलने की उनसे, तीव्र इच्छा जगी है
याद में उनकी क्यों आँखे भर आयी


आज फिर अम्मा बड़ा याद आयीं.........
मेरी वो दादी थी, सब कहते थे अम्मा
खुद में मगन, घर की धुरी थी अम्मा

कमरे में उनके थी एक चारपाई
कार्निस पे होती डब्बा भर मिठाई
लाडू बनती थी सबको खिलाती थी
देतीं थी रोटी पे रख के मलाई

आज फिर अम्मा बड़ा याद आयीं..........
मेरी वो दादी थी, सब कहते थे अम्मा
खुद में मगन, घर की धुरी थी अम्मा

कॉटन की साड़ी और उस पे कढ़ाही
सीधे पल्ले की साड़ी में लगती अलग थी
रंगो भरे सुन्दर से स्वेटर बनती थी
सबसे अलग होती जिनकी बुनाई

आज फिर अम्मा बड़ा याद आयीं...........
मेरी वो दादी थी, सब कहते थे अम्मा
खुद में मगन, घर की धुरी थी अम्मा

आंगन में बैठ उनका मठ्ठी बनाना
मोहल्ले की औरतों को घर में बुलाना
पापड़ अचार मठ्ठी सबको सीखना
स्वेटर के सबको डिज़ाइन दिखाना

आज फिर अम्मा बड़ा याद आयीं...........
मेरी वो दादी थी, सब कहते थे अम्मा
खुद में मगन, घर की धुरी थी अम्मा


नुक्कड़ हलवाई की दुकान से अक्सर
मंगाती थी समोसे वो मेरे लिए अक्सर
याद नहीं उनको क्या लगता था अच्छा
पर उनको था रहता ख्याल हम सबका

आज फिर अम्मा बड़ा याद आयीं..........
मेरी वो दादी थी, सब कहते थे अम्मा
खुद में मगन, घर की धुरी थी अम्मा

बचपन में बस वो दादी थी मेरी
उनके वजूद को मैं अब हूँ समझती
औरत से होती है रौनक ये घर की
उस घर की आत्मा थी उनमे ही बसती

आज फिर अम्मा बड़ा याद आयीं..........
मेरी वो दादी थी, सब कहते थे अम्मा
खुद में  मगन, घर की धुरी थी अम्मा

उनसे जुड़ा कुछ महसूसती हूँ मुझमे
सब कहते हैं उनकी ही आदतें है मुझमे
अनजाने कह जाती, बातें उनकी सिखाई
लगता है मुझमे, बसी उनकी है परछाई

आज फिर अम्मा बड़ा याद आयीं...........
मेरी वो दादी थी, सब कहते थे अम्मा
खुद में मगन, घर की धुरी थी अम्मा

आज फिर अम्मा बड़ा याद आयीं............

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