मेरे हर सवाल के....तुम बनो जवाब से....
रात की नमी है जो
ओस सी जमी है जो
ये सुर्ख लाल गाल पे
अश्क़ सी थमी है जो
ये दिल में घनीभूत थी
पिंघल के गिरी है जो
गाल से ये बह गयी
दिल को छु रही है जो
याद फिर मचल गयी
आँख यूँ भरी है जो
दिल को मेरे खल गयी
तेरी ये कमी है जो
कल खिली काली थी वो
मुरझाई सी गिरी है जो
एक लड़ी हंसी की
बिखरी सी पड़ी है जो
फिर से तुम पिरो भी दो
इन लबो को छू के तुम
थोड़ी सी हंसी भी दो
दिल में रह जाओ ना
यूँ ना पिंघलो अश्क़ से
जहन में बसे रहो
बनके एक नक्श से
आँख में ठहरो जरा
यूँ ने बिखरो ख्वाब से
मेरे हर सवाल के
तुम बनो जवाब से
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