Muktak chand
क्या तुमने भेजा है चाँद को मेरी निगरानी के लिए अक्सर मेरी खिड़की के बहार से मुझे छुप छुप के देखता है। ———- ठोकरों का दोष में क्या राह के पत्थर को दूं मंजिलें जिसने दिखायीं वो मील का पत्थर ही था ——- वो जो तेरे मेरे बीच लम्बा चला था ये उदासी सिला है उसी सिलसिले का ———- जो तोड़नी थी ये रस्मे यो रस्मे क्यों बनायीं बनाना था झरोखा तो दीवारे क्यों उठायी Banane the jharokhe to dewware kyo uthayi ——— मील का पत्थर भी अपनी मंजीलो को पा रहा हर पथिक को उसकी मंजिल का पता बतला रहा Ye patjik ko manjilo ka jo pata batla raha. ——- वक्त की शाखा पे वो लम्हा जो फूल बनके खेला था मैने यादो की किताब में अब तक संभल कर रखा है गहे बाघे पन्ना को पलटते ग...