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Showing posts from February, 2022

Muktak chand

  क्या तुमने भेजा है चाँद को मेरी निगरानी के लिए  अक्सर मेरी खिड़की के बहार से मुझे छुप छुप के देखता है। ———- ठोकरों   का   दोष   में   क्या   राह   के   पत्थर     को   दूं मंजिलें   जिसने   दिखायीं   वो   मील   का   पत्थर   ही   था   ——- वो जो तेरे मेरे बीच लम्बा चला था  ये उदासी सिला है उसी सिलसिले का  ———- जो तोड़नी थी ये रस्मे यो रस्मे क्यों बनायीं  बनाना था झरोखा तो दीवारे क्यों उठायी  Banane the jharokhe to dewware kyo uthayi  ——— मील का पत्थर भी अपनी मंजीलो को पा रहा   हर पथिक को उसकी मंजिल का पता बतला रहा  Ye patjik ko manjilo ka jo pata batla raha. ——- वक्त   की   शाखा   पे   वो   लम्हा   जो   फूल   बनके   खेला   था मैने   यादो   की   किताब   में   अब   तक   संभल   कर   रखा   है गहे   बाघे   पन्ना   को   पलटते   ग...

दोस्ती

                      दोस्ती बड़ा   मुश्किल   है   तुमसे   दोस्तों   पे   कुछ   भी   लिख   पाना नहीं   मुनकिन   है   हर   जज़्बात   को   अल्फाज़   दे   पाना वो   जो   आवाज   सुनके   मेरे   दिल   का   हाल   पढ़ते   हैं   मेरे   दिल   में   है   वो ,  आसां   नहीं   लफ्जो   में   कह   पाना वो   मुझसे   कह   रहे   हैं   दोस्ती   पे   कुछ   तो   लिख   दूँ   मैं   मैं   लिख   भी   दूँ   तो   मुश्किल   है   मेरा   उनको   सुना   पाना   चलो   मैं   कह   भी   देती   हूँ   तो   मुश्किल   ये   इन्हे   होगा   बिना   गाली   के   मेरी   इतनी   मीठी  बात  सुन   ...
वक्त   की   शाखा   पे   वो   लम्हा   जो   फूल   बनके   खिला   था मैने   यादो   की   किताब   में   अब   तक  संभाल  कर रक्खा   है गहे   बगाहे पन्ने   पलटते   गिर   जाता   है  अक्सर,  बेरंग सा है पर   इसने मेरी    यादो को खुशबू   से   महका   रक्खा है 

सीली सी ख्वाहिशे

सीली   सी   ख्वाहिशे   सीली   सी   कुछ   ख्वाहिशे   यादो   के   बक्से   में   पड़ी   हैं सोचती   हूं   की   उन्हे  आज कुछ  धूप   दिखा  दूं पेंसिल   से   कुछ   चित्र   उकेरे  थे कभी,  बेरंग   पड़े    हैं इन्द्रधनुषी   जिंदगी   से   चुरा ,  उन   पे   कुछ   रंग   चड्ढा   दूं दो   पल   रुक   जाने   से   सफर   कहां   ख़त्म   हो   जाता   है सोचती हूँ ,  उम्र   के   उन   लम्हो   का   कुछ  हिसाब  चुका   दूं अधूरी   ख्वाहिशो   का,मैं   कब   तक   बोझ उठाती   रहूंगी आंखों   में ,  उन्हे   पूरा   करने   का ,  एक   ख्वाब   जगा  दूँ  वो   जो   किरदारों   के   बीच   कहीं   खो   सी   गई   है   निधि आज ...

जूता पुराण

जूता   पुराण  ~kavita Nidhi आज   मंदिर   की   पौड़ी   पे   बैठे   नज़र   गयी   अनगिनत   जूतों   पर   रंग   बिरंगे   नए   पुराने ,  कुछ   बड़े ,  कुछ   छोटे ,  कुछ   सॉफ्ट   हैं   और   कुछ   हार्ड   हैं   मानिये   जनाब   ये   जूते   नहीं   पहनने   वाले   के   आधार   कार्ड   है    वो   चमकदार   महंगा   लेदर   का ,  एक   भी   सिलवट   नहीं   है   उस   पर   पर   पहनने   वाले   का   माथा   सिलवटों   भरा   जरूर   होगा   ये   जरूर   किसी   अमीर   आदमी   का   रहा   होगा   और   एक   ये   देखिये   फटे   तले   वाला   जाने   किसने   इसे   घिसा   होगा   जरूर   कोई   इसे   पहन   बड़ा ...