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Showing posts from June, 2021

Kahani

  Ye Zindegi ki Gaddi bhag rahi hai Mere do samanantar ki rail per  Ek samanantar jo mere andar hai  Aur doosra jo bahar ye bahar chalta hai  Lagta hai jaise dono chal rahen Hain Bina rooke bina thake Per sach me kahan itne saalo me mere Andar ki duniya badali hai Aur kahan ye bahar ki duniya bhi badali hai  Kahate hain na Sab relative hai  Ye waqt ki Gaddi hai jo bhag hrahi hai  Varna ye andar Aur bahar ke samanantar To rail ki patriyo se wahi rooke hai.  Aaj bhi mere andar ki duniya itni hi pyari Aur sundar hai Aur tum Aaj bhi usme utna hi ho Kitna pehle hua karte the.  Bahar ki duniya bhi to kuch nahi badali, wahi bhag bhag, wahi mushkile Aur Sab kuch mere controls se bahar. अक्सर जब भी गाड़ी की खिड़की से एक तरफ झाँक कर देखती हूँ तो मन में बेचैनी हो उठती है की आखिर दूसरी तरफ की खिड़की में क्या होगा? और मन कल्पनाओं में खो जाता है  और अपनी सोच से एक सुन्दर दृश्य गढ़ता चला जाता है. ये ज़िन्दगी की गाड़ी भी अजीब है जिस तरफ की खिड़की पैर आप ह...
Is waqt ke hi saath main mai chalta chala gaya Main waqt ke sanche me dhalta chala gaya Na Jane kitna iske liye mai Badal gaya  Jo isne chaha mujhse main waise hi ban gaya Ab dekhta hoon khud ko to mai main hi na raha  Main waqt yu saath nibhata chala Gaya  Na Jane kitna iske liye mai Badal gaya  Jo isne chaha mujhse mai usme hi dhal gaya  Ab dekhta hoon khud ko to mai main hi na raha  Yun khojta tujhko khuda mai Darba dar phira Mandir me na mila mujhe majid me na mila  Kat jaati meri Zindegi talash me teri Jo khojta na khud me tujhko e mere khuda

Chod andhiyara

  छोड़ अँधियारा सभी आज उजाला करके दिल को छू ले जो तेरे गीतों का वादा करके  आएंगे मिलने को हम तुमसे अभी शाम ढले  तुम भी चले आना यहाँ कोई बहाना करके  छोड़ अँधियारा सभी आज उजाला करके बैठे हैं आज यहाँ हम तेरी रहें तकते  इस तरह इंतज़ार तेरा करू देर तलक  तुम भी चले आना यहाँ कोई बहाना करके  बासुरी सी मैं बजूं लग के अधरों से तेरे  बहूँ संगीत सी मैं जो तेरी ऊँगली थिरके  छोड़ न जाना मुझे तुम यूं बेगाना करके  अपने इस प्यार में मीरा सा दीवाना करके  तुझमे ही खोयी हूँ और तुझमे ही उलझी हूँ मैं  इस तरह प्यार में तप के तेरे झुलसी हूँ मैं  मेरी धरकन को छु लो तुम, मन मेरा सुलझा भी दो  मुझे बंध जाओ तुम,  खुद को उलझा भी दो  एक लगन खुद में भी लौ सी कोई सुलगा करके  अपने हाथो से आके मुझको जरा सुलझा दे  बांध बंधन में मुझे खुद को भी तू उलझा दे  वार्ना तू खुद को भी मुझमे ही अब तो उलझा दे 

अलमारी

मैं जब भी खोलती हूँ यूँ तेरे कपड़ो की अलमारी  भरी पाती हूँ मैं तेरी कई यादों से अलमारी  तुझे मैं याद करती हूँ जो तुझसे दूर होती हूँ  तेरी एक शर्ट को बाँहों में लेके झूम जाती हूँ  तेरा एहसास पाती हूँ तुझे महसूस करती हूँ  न जाने कितने जज्बातों को रख्खे है ये अलमारी  मैं जब भी खोलती हूँ यूँ तेरे कपड़ो की अलमारी। ..  तेरी जैकेट बुला एक सर्द सी वो रात लाती है  तेरी खुशबू थी जिसमे ये वही सौगात लाती है   बस एक तू था और एक मैं थी वही एक पल जगती है  न जाने कितनी बातों को सहेजे है ये अलमारी  मैं जब भी खोलती हूँ यूँ तेरे कपड़ो की अलमारी। ..  हैं कुछ रंगीन लम्हो सी यहाँ लटकी तेरी  टाई  जो पहली बार मिलने आये थे पहने ब्लू टाई  लगा आकाश सी विस्तृत, समुन्दर की  है गहराई  तेरे हर रंग को खुद में समेटे है ये अलमारी  मैं जब भी खोलती हूँ यूँ तेरे कपड़ो की अलमारी। ..  रुकी तेरी घड़ी ड्रॉर में, दिल में ठहरी घड़ियों सी   तेरे संग प्यार में बीते हैं उन सुखदुख के लम्हो सी  जो बाकि साथ जीने ...