Posts

Showing posts from March, 2021

Muktak

मोहब्बत क्या पहली और क्या आखिरी  जब होती है तो हर ख़ुशी पहली बार सी लगती है  और जब जाती है तो हर सांस आखिरी सांस सी लगती है  

New time love

ये हो न हो दोस्त  हमे इश्क़ ही नज़र आता है  बात किसी से करनी हो पर तेरा नंबर लग जाता है  माना तुझे ये इश्क़ वाला love अभी नहीं है मेरे साथ  पर  यार  lets try  explore करने में क्या जाता है  नहीं हुआ इश्क़ तो  break up कर लेना शौक से  I will manage one sided love तेरा क्या जाता है  इस  move on के ज़माने में क्या पता इश्क़ मिल ही जाए  सुना है सच्चे दिल से ढूंढो तो खुदा भी मिल जाता है  कहतें है इश्क़ में लोग संवर जाते हैं  Seriously I wanna find,इश्क़ पे इतना कुछ क्यों कहा जाता है  

उधार रही ज़िन्दगी

शिकायते ज़िन्दगी की ज़िन्दगी से   कितना   संवारते   रहे   पर   बेजार   रही   ज़िन्दगी एक   ज़िन्दगी   तुमपे   उधार   रही   ज़िन्दगी     मैं   घुँगरू   पहन   तेरी   हर   ताल   पे   नांची   फिर   भी   जाने   क्यों   तू   बेताल   रही   ज़िन्दगी   बड़े   सलीके   से   मिला   करती   हूँ   सबसे   पर   अंदर   बे   तमीज   बे   हाल   रही   ज़िन्दगी   मुस्कानो   के   मुखोटे   लगा   कर   रख्खे   हैं     बस   मैं   ही   जानती   हूँ   किस   कदर   बर्बाद   रही   ज़िन्दगी   और   मरने   को   चाहे   आज   मर जाऊं  मैं   पर   जीते   जी   भी   तो   शमशान   रही   ज़िन्दगी   इस   जीने   को   भी   क्या   जीना ...

सिलवटें

सिलवटें जाने कितनी   ही   तरह   की   देखीं   हैं   मैंने   ये   सिलवटें   (इ)स्त्री हूँ , महसूस  भी  की   हैं   मैंने   ये   सिलवटें   कभी   परेशानी   सी  टिकी  पेशानी   पे   ये   सिलवटें   कभी   मुकद्दर  मेरा  लिखती   माथे   पे   ये   सिलवटें   कभी   तजुर्बा   बन   हाथो   पे   मेरे  ठहरीं   ये   सिलवटें   कभी   बीच   भोहों के  दर्द   सी   बैठी   ये   सिलवटें   कभी   होठों   के   कोने   से   खिलखिलाई  ये   सिलवटें   कभी   उम्र   बन   चहरे   पे   हैं  छायी  ये   सिलवटें   कभी   कशिश  सी लगी  पतली   कमर   पे   ये   सिलवटें   कभी   मातृत्व  सी थी  माँ   के   पेट   पे   ये   सिलवटें ...

ख्वाबो के बटन

  हर सुबह कुछ टूटे  हटा कर,  ज़िन्दगी के कुर्ते में,हौसलों के धागो से,  नए और रंगीन ख्वाबो के बटन टाँकती हूँ  देखो ना इस कुर्ते को तुम,  कुछ मटमैला हो गया है चलो आज जाने दो,  कल थोड़ा इसे और भी साफ़ धो कर डालती हूँ  पता नहीं क्यों कच्चे से हो गए हैं,  ये हौसलों के धागे ,ख्वाबो के कुछ बटन  गिरकर खो ही जाते है, चाहे कितना मजबूती से बांधती हूँ  सुनो तुम संभाल के रखना ये  टूटे ख्वाबो के बटन उमीदों की जेब में,  ढूंढ रही हूँ धागों के छोर, बस जरा थोड़ी सी मोहलत मांगती हूँ  ज़िन्दगी के सफ़ेद धुले इस कुर्ते की  जतन से एक एक कर हर सिलवट निकलती हूँ,  बड़े प्यार से हर दिन इसे अपने इन हाथो से सवारती हूँ  और हर एक सुबह कुछ टूटे हटा कर, उमीदो की सुई में हौसलों के धागे डाल  इस कुर्ते में  फिर से  नए और रंगीन ख्वाबो के कुछ और बटन टाँकती हूँ 

आवाज़ दे देना

मेरे   एहसास   को   तुम   गीत   में   अलफ़ाज़   दे   देना   मैं   जाऊं   दूर   तो   तुम   रोक   कर   आवाज़   दे   देना इन्ही   मुश्किल   से   रास्तो   पे   जो   खो   जाऊं   मैं   एक   दिन  तो  पता   तुम   याद   रखना   मंजिलो   का   साथ   दे   देना   कटे   दिन   धूप   में   चाहे   बड़ी   मुश्किल   से   मेरा   पर   मैं   जिसमे   चैन   से   सोऊँ   बस   ऐसी   रात   दे   देना   मेरा दिल प्यास से तड़पा बहुत है अब तलक सागर  मैं जिसमे डूब के नाचू  वो तुम बरसात दे देना  न मांगूंगी मैं तुमसे ज़िन्दगी का साथ ओ हमदम  मेरे हाथो में बस तुम आज अपना हाथ दे देना  मुझे बक्शी है इज्जत हर तरफ लोग ने वैसे तो  मगर ख्वाइश है थोड़े प्यार की तुम प्यार दे देना  बहारे तो बहुत सी आके गुजरी हैं ये ...