हद से आगे
ख़ुद को मैंने बदल कर भी देखा
तेरे आइने मे उतर कर भी देखा
मुझमें मैं को मिटा कर के मैने
सनम तुझसा खुद को बनाकर भी देखा
प्यार की एक झलक को आँखों में तेरी
अपना वजूद, फ़ना करके भी देखा
मिटने से पहले तड़पना था बाकी
अश्क को एक नामी को तरसते भी देखा
जिस्म को दर्द होता नहीं आजकल
दर्द में रूह को अब सिसकते है देखा
क्या और हारूँ जो तुझको मैं पा लूँ
क्या कुछ नहीं आजमा के है देखा
बेवफ़ाई नहीं उनकी फ़ितरत में लेकिन
वफ़ा मैंने उनको सिखा के भी देखा
प्यार आता नहीं उनको करना किसी से
मैंने भी सोचो, कि क्या उनमे देखा ~kavitaNidhi
प्यार लौटा है मेरा टकराके जख्मी
सीने में दिल उनके पत्थर का देखा
चाहती हूं सख्त उनसा करलूं मैं खुद को
मगर मोम सा दिल पिंघलते है देखा
नहीं था ये आसान हदे पार करना
हदो से भी आगे निकल कर है देखा
ख़ुद को यू मैंने बदल कर भी देखा
आइने मे तेरे यूँ उतर कर भी देखा...
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