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Showing posts from January, 2024

Kahani- vo sawali si ladki.

  आज सोचा कि कुछ लिखा जाएगा. कहानी लिखने का मन बना पर सोच रही हूं कि क्या लिखूं। वैसी कहानी है क्या? कुछ घटाएं जो आपके मन  को प्रेरित कर सके या आपके जीवन को प्रेरित करे। पर ये घाटनाये कहानी नहीं है. बाल्की उनको अपनी नजरों से देख कर लिखना कहानी है। और अगर आपका नजरिया पढ़ने वाला समझ  जाए और महसूस कर पाए तो आपकी कहानी सार्थक है। और अगर ये कहानी किसी की जिंदगी में प्रेरणा बन जाए तो ये कहानी अमर है। चलिए ये तो कहानी की बात हो गई...पर कौन सी ऐसी घटना थी  मेरे जीवन की जिस पर मैं  कहानी लिख सकती हूँ । तो बात उन दिनों की है जब मैं कक्षा ६  में थी।  मेरे पापा  एक बैंक में नौकरी करते थे  और उनका हर ३-४ साल में स्थानांतरण (तबादला होता रहता था। हमने  अभी अभी इस नए शहर में शिफ्ट किया था और नवंबर का महीना होने के कारण मेरा स्कूल में लेट एडमिशन था  हाफ इयरली नजदीक थे और मुझे बहुत सारा काम पूरा करना था। टीचर ने फर्स्ट डे, क्लास की टोपर रीना भारती  से मेरी मित्रता करा दी और उसे मेरी सहायता करने के लिए कहा।   वो एक दुबली पतली सवाली सी लड़की थ...

अधूरा जो फ़साना

कहाँ कोई मुकम्मल प्रेम के कभी गीत गाता    है   अधूरा जो फ़साना रह गया, उसे गुनगुनाता है   भले लगती हो अच्छी आज भी हमे हैप्पी ये एंडिंग पर  मगर जो दर्द है हमको वही बस याद आता है   कहाँ कोई मुकम्मल प्रेम के कभी गीत गता है.....  जरा सोचो कि लैला मिल गयी होती जो मजनू को  वो होता आम सा किस्सा, जमाना भूल जाता है  कहाँ कोई मुकम्मल प्रेम के कभी गीत गता है.....  पति के रूप में उन्हें रुक्मणी ने पाके भी क्या पाया। अभी भी कृष्ण के संग नाम तो राधा का आता है। कहाँ कोई मुकम्मल प्रेम के कभी गीत गता है.....  अधूरे प्रेम की तड़पन, मुकम्मल प्रेम से ज्यादा  तभी तो  दर्द ये दुनिया के दिल  को चीर जाता है   मुकम्मल प्रेम के किस्से तो छुप कर  घर  में होते हैं  अधूरे प्रेम का चर्चा किया  नुक्कड़ पे  जाता है    कहाँ कोई मुकम्मल प्रेम के कभी गीत गाता    है   अधूरा जो फ़साना रह गया, उसे गुनगुनाता है ….

कहानी- समानान्तर

कहानी- समानान्तर अक्सर जब भी गाड़ी की खिड़की से एक तरफ झाँक कर देखती हूँ तो मन बेचैन हो उठता है कि आखिर दूसरी तरफ की खिड़की में क्या होगा? और मन कल्पनाओं में खो जाता है  और अपनी सोच से एक सुन्दर दृश्य गढ़ता चला जाता है. ये ज़िन्दगी की गाड़ी भी अजीब है जिस तरफ की खिड़की पर आप हो वो आपकी रियलिटी है और दूसरी तरफ की खिड़की हमेशा ही उत्सुकता का विषय रहती है और आप अपनी सोच में और ख्वाबो में सुन्दर दृश्यों से इसे सजाते चलते है हर मिनट हर पल, परन्तु वो सदा ही यथार्थ से बहुत परे होती हैं   ऐसे की कुछ ख्यालों में खोयी हुई सी मैं हर roj की तरहा ऑफिस से कब घर पहुंच गयी पता ही नहीं  चला  ट्रैन से उतर कर मैंने रिक्शा लिया और घर की तरफ बढ़ गयीl यथार्थ कितना भी सुन्दर क्यों न हो, मन की उस सजिली दुनिया सा नहीं होता l ज़िन्दगी का सबसे बड़ा दुःख भी यही है, कि हम हमेशा यथार्थ की उससे तुलना करते रहते हैं l पर  इसके बिना भी तो मन की दुनिया सूनी हो जाएगी और ये साथ चलने वाली दुनिया ही तो हमारी आँखों को रंगीन सपने देती है.  अभी मैं अपने मन की दुनिया में टहल रही थी की ...