ख़ुदगर्ज

वो मेरे एहसान का बदला चुकाने आये हैं 

मजबूरियों में मेरी मुझ पर हक जताने आये हैं

दूर से लेते रहे बर्बादियों  का ये मज़ा तब

दफ्न करके लाश कोफिर से ज़िलाने (जलाने)आये हैं।


कोहराम सा इन धड़कनो में बिन रुके मचता रहा

दिल की गहराई में एक नासूर सा चुभता रहा

प्यार को उनको तरसते अश्क भी सूखे मेरे

आज छूकर वो लबो सेफिर रूलाने आये हैं


एक तेरी आवाज़ सुनने को तड़पते हम रहे।

तेरी गलियों में भटकते एक ज़माना हम रहे

ज़िल्लतो से हार कर, मायूस जब हम हो गए

छोड़ कर ना जाये उनकोवो बुलाने आये हैं


वो ज़माने भी कभी थे उसकी खुशियाँ में थे खुश हम

उनके सपनों में थे डूबेदुनिया से थे बेख़बर हम

आज उनसे दूर आकर खुद में जो उलझे निधि हम

यादों के हमको तराने वो सुनाने आये हैं


  

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